Thursday, November 16, 2017

मेरे हमदम, मेरे दोस्त


यह रिश्ता स्नेह का है। प्यार का है। यह रिश्ता विश्वास का है। इस रिश्ते की बुनियाद बेहद नाजुक डोर पर टिकी होती है। इस नाजुक डोर की न केवल हिफाजत करना बल्कि इसको मजबूत करने की जिम्मेदारी किसी चुनौती से कम नहीं होती। यह रिश्ता सात जन्म का होता है। यह रिश्ता जन्म जन्मांतर का है। जी हां यह रिश्ता पति-पत्नी का है। इस रिश्ते में नोकझोंक भी हैं। रुठना-मनाना भी है। हार व जीत भी है। इस रिश्ते में शिकवा-शिकायतें हैं तो इस रिश्ते में कभी खुशी कभी गम भी आते हैं। यह रिश्ता सदा सरपट भी नहीं दौड़ता, क्योंकि उसमें उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। इस रिश्ते में कभी जिद कर ली जाती है तो कभी समझौता भी करना पड़ता है। यह रिश्ता बिना किसी व्यवधान के चले तो इससे बड़ा कोई सुकून नहीं होता है लेकिन इसमें कहीं कोई व्यवधान आया तो इससे ज्यादा तकलीफदेह भी कोई नहीं होता। तभी तो यह रिश्ता अजीब है। अनूठा है और रोचक भी। यह रिश्ता गुदगुदाता है तो कभी आंखें नम भी करता है। प्यार भरे इस रिश्ते में गलतफहमियां घुसपैठ कर जाएं तो यह तकलीफ भी देता है। अविश्वास नामक वायरस इस रिश्ते का सबसे बड़ा दुश्मन है। गलतफहमी व अविश्वास से जो रिश्ता अछूता है तो वह संसार की सभी बाधाएं पार कर सकता है।
अद्र्धांगिनी निर्मल का आज जन्मदिन है। उसने भी जीवन के चार दशक पूरे कर लिए। जीवन का यह पड़ाव सबसे महत्पपूर्ण होता है। चार दशक का आनंद लेने के बाद एक नए पड़ाव में प्रवेश करना भी बड़ा चुनौती वाला होता है। बड़े होते बच्चों की परवरिश व उनको संस्कार देने का वक्त। 
खैर, बीते साढ़े तेरह साल में ज्यादातर समय मेरा निर्मल के साथ ही बीता है। मैं आज इस मुकाम पर इसीलिए हूं कि घर के तमाम कामों को निर्मल बखूबी संभाल लेती है। वृद्ध माता पिता को साथ रखने का फैसला मेरा था लेकिन मेरे इस फैसले से निर्मल के चेहरे पर कभी शिकन नहीं आई। हकीकत यह है कि मेरे काम से भी ज्यादा कठिन, महत्वपूर्ण काम व जिम्मेदारी निर्मल की है। वह बच्चों से भी मासूम है और बेहद संवदेनशील भी। थोड़ा सा प्रोत्साहन उसको काम करने को प्रेरित करता है। कई बार कार्यालयीन दवाब या तनाव की झलक हमारी दैनिक बातचीत में आ जाती है तो वह किसी समझदार की तरह मुझे गाइड करती है। संबल प्रदान करती है। हौसला देती है। वह कभी दोस्त की भूमिका में होती है तो कभी अभिभावक बन जाती है। कभी वह टीचर की तरह पेश आकर प्यार डांट भी देती है। इतना होने के बावजूद कई बार नोकझोंक मर्यादा लांघ जाती है लेकिन हम दोनों में से कोई एक पहल कर लेता है। हां थोड़ी देर के लिए दोनों का अहम जरूर जागता है, टकराता भी है लेकिन फिर यह पछतावे पर ही जाकर खत्म होता है। पछतावा भी ऐसा कि फिर दोनों ही आंसू बहाते हैं। 
सचमुच निर्मल बेहद समझदार, संस्कारित, सुशिक्षित, सुशील, सहज, सादगी पसंद, हंसोड़, मिलनसार व व्यवहार कुशल महिला है। वह समर्पण भाव से सहयोग करने को तत्पर रहती है। पाक कला में उसका कोई जवाब नहीं है। सच में कई बार खाना खाते खाते पेट भर जाता है लेकिन मन नहीं भरता। उसको भी खाना बनाने व नित नए प्रयोग करने में बेहद खुशी मिलती है। और हां मेरे को 50 से 75 किलो तक ले जाने में उसके लजीज खाने का ही योगदान है। 
मौजूदा दौर की चकाचौंध से निर्मल थोड़ी अलग जरूर है। जीवनसंगिनी के जन्मदिन पर परमपिता परमेश्वर से यही कामना करता हूं। वह स्वस्थ रहे। विवेकशील रहे। ऊर्जा व उमंग से परिपूर्ण रहे। उसके जीवन में हमेशा खुशियों के रंग यूं ही कायम रहें। हमारे दाम्पत्य जीवन की गाड़ी बिना हिचकोले खाए चलती रहे, दौड़ती रहे। वाकई निर्मल तुम ग्रेट हो। तुम्हारा काम मेरे काम से बड़ा है। सच में काफी बडा..। हैप्पी बर्थ डे टू यू....निर्मल..हंसती रहो खिलखिलाती रहो, खुशियों की रंग बिखराती रहो.

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