Thursday, November 16, 2017

वाकई दुनिया छोटी है और गोल भी


बस यूं ही
कहते हैं ना दुनिया गोल है और छोटी भी। एक गाना भी है, छोटी सी ये दुनिया पहचाने रास्ते हैं, तुम कभी तो मिलोगे कहीं तो मिलोगे तो पूछेंगे हाल। जी हां यह गाना कल बिलकुल सटीक बैठ गया। दरअसल, कल जयपुर में आफिस की मीटिंग से फ्री हुआ तब तक मोबाइल की बैटरी मरने की कगार तक पहुंच चुकी थी। उबर की टैक्सी को बुलावा भी जैसे तैसे दिया वरना ऑटो वाले से मोलभाव करना पड़ता। सिंधी कैम्प पहुंचा तब तक मोबाइल कभी भी बंद होने वाली स्थिति में आ चुका था। बस में बैठते ही तत्काल एक मैसेज लिखा, मैं दस बजे तक झुंझुनूं पहुंच जाऊंगा आप मिल जाना मेरे को गांव छोडऩा है। यह लिखकर मित्र योगेन्द्रसिंह कालीपहाड़ी को सेंट कर दिया। उनका जवाब आता इससे पहले ही मोबाइल बंद हो गया।
बस से नीचे से उतरकर महिला परिचालक से गाड़ी चलने का समय पूछा तो उसने 4.25 बजे बताया। लगे हाथ अभी क्या बजा है यह भी पूछ लिया तो उसने पर्स से मोबाइल निकालकर कहा 4.16 बजे हो गए। इसके बाद मेरी नजर एक दुकान पर लगे बिजली के बोर्ड पर पड़ी। आंखों में चमक और उम्मीद के साथ मैं उस दुकान की तरफ बढ़ा। मैंने दुकानदार से अपनी पीड़ा बताई तो वह कहने लगा मोबाइल चार्ज करने का शुल्क बीस रुपए लगेगा। मैं थोड़ा सा मुस्कुराया और फिर मुंह बनाते हुए खुद से ही कहने लगा यह भी कोई बात होती है। दुकानदार भी मेरा मिजाज शायद भांप गया था, बोला भाईसाइब दिन में पचास लोग आते हैं। सब से लेते हैं। मैं नाक भौं सिकोड़ता हुआ दूसरी तरफ लपका। यह समाचार-पत्र विक्रेता की दुकान थी। छोटी सी गुमटी। अंदर एक दाढ़ी में युवक बैठा था। आंखों पर नजर का चश्मा लगाए। उसके पास दो युवक बैठे थे। मैंने उसको भी यही समस्या बताई तो कहने लगा दस रुपए लगेंगे। मैंने कहा भाई टाइम होने वाला है, दो चार मिनट की ही तो बात है, तो कहने लगा है चाहे दो मिनट करो या दो घंटे उससे कोई मतलब नहीं है, पूरे दस ही लगेंगे।
आखिरकार मैंने मोबाइल व चार्जर उसको दे दिया और वहां दुकान के आगे खड़ा हो गया। मेरी एक नजर बस पर तो दूसरी मोबाइल पर टिकी थी। इस दौरान दो युवक और आए और उन्होंने दाढ़ी वाले युवक को चैनजी के नाम से संबोधित किया। हावभाव और बातचीत के तरीके से मैं इतना तो समझ गया है यह युवक जरूर राजपूत परिवार से है। मैंने सोचा यह युवक शायद सीकर का होना चाहिए।
इसी बीच बस की तरफ हलचल बढ़ती देख मैंने तत्काल दस रुपए जेब से निकाले और उससे पहले टाइम पूछा। उसने 4.24 बजे बताए तो मैंने मोबाइल व चार्जर मांग लिए। इसके बाद शंका का समाधान करने के लिए मैंने युवक से पूछा आप कहां के हो? हालांकि यह मेरी आदत भी है। मैं किसी से परिचय करने के बाद तत्काल ही उससे गांव आदि पूछ लेता हूं। युवक ने कहा कि उसका गांव नागौर जिले में मकराना के पास है। मैंने हाथोहाथ पूरक सवाल दागकर गांव का नाम भी पूछ लिया। युवक का जवाब सुनकर मैं चौंक गया। उसने जो नाम बताया वह चिंडालिया का था। मैं मंद ही मंद मुस्कुराया और कहा चिंडालिया मेरा ससुराल है। अब सवाल पूछने की बारी युवक की थी। उसने कहा आपकी ससुराल किनके यहां है। मैंने ससुर जी का नाम बताया तो कहने लगा कि वह तो काकोसा लगते हैं और जोधपुर रहते हैं। यह कहने के बाद उसने दस रुपए भी वापस कर दिए। मात्र पांच-सात मिनट के इस घटनाक्रम, वार्तालाप व परिचय को लेकर कई बार तक सोचता रहा। सब कुछ अकस्मात हुआ लेकिन संयोग देखिए। है ना गजब।

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