Thursday, November 16, 2017

इक बंजारा गाए-9

राहत की सांस
पुलिस व आबकारी से अब तक परहेज करती आई स्थानीय एसीबी टीम के चेहरे पर इन दिनों कुछ राहत की सांस देखी जा सकती है। इसकी प्रमुख दो वजह हैं। एक यह तो यह है कि सूरतगढ़ में आबकारी अधिकारी पर कार्रवाई करने के साथ ही परहेज का सिलसिला अब टूट गया है। टीम ने सूरतगढ़ में आबकारी निरीक्षक को पकड़ कर यह सिद्ध किया है कि यह काम सिर्फ बीकानेर की टीम ही नहीं वरन वह भी कर सकती है। दूसरी खुशी की वजह थोड़ी अलग है। दरअसल, बीकानेर की एसीबी टीम लगातार श्रीगंगानगर में पुलिस व आबकारी पर कार्रवाई कर रही थी तो स्थानीय टीम की भूमिका को लेकर चर्चा जोरों पर चल पड़ी थी। बीकानेर जिले में भी एक कार्रवाई हुई थी, जिसे चूरू टीम ने अंजाम दिया बताया। ऐसे में चर्चा बीकानेर की टीम की भी होने लगी। साथ में यह संदेश भी चला गया कि बीकानेर की टीम जब श्रीगंगानगर में आकर कार्रवाई कर सकती है तो बीकानेर में चूरू की क्यों नहीं कर सकती। बहरहाल, श्रीगंगानगर की टीम इस दोहरी खुशी में फूले नहीं समा रही है।
वाह जी वाह
कहावत है कि सांप निकलने पर लाठी पीटने से कोई फायदा नहीं होता है, लेकिन हास्यापस्द स्थिति तो तब होती है तब सांप है या नहीं, वह निकल गया या आएगा यह पता होने से पहले ही लाठी पीट दी जाए तो? खैर, श्रीगंगानगर जिला मुख्यालय पर एक वाकया ऐसा ही हुआ है। सरकार के कामों के प्रचार-प्रसार वाले विभाग के मुखिया ने एक प्रेस विज्ञप्ति पर आंख मूंदकर इतना विश्वास किया कि पुराना समाचार ही अखबार के कार्यालयों में प्रेषित कर दिया। यह समाचार किसी पुरस्कार से संबंधित था और इसमें आवेदन करना था, लेकिन इसमें वस्तुस्थिति यह थी कि आवेदन की अंतिम तिथि निकल चुकी फिर भी समाचार बना दिया गया। अधिकारी के मामला जब संज्ञान में आया तो हालत काटो तो खून नहीं वाली हो गई। अधिकारी ने अपनी झेंप यह कहते हुए मिटाने की कोशिश की कि विज्ञप्ति महिला अधिकारियों से संबंधित थी, लिहाजा पुष्टि करना उचित नहीं समझा।
प्रदर्शनों से परहेज
एक राजनीतिक दल के प्रदर्शनों में इन दिनों यकायक कमी सी आई है। भले ही चुनाव में एक साल बचा हो लेकिन अभी तक प्रदर्शनों से परहेज ही किया जा रहा है। वैसे बताया जा रहा है कि इस संगठन के चुनाव होने हैं। अब पुराने पदाधिकारी प्रदर्शनों से इसीलिए बच रहे हैं कि अब उनको तो जिम्मेदारी मिलनी नहीं है, जबकि नया कौन बनेगा यह अभी तय नहीं है, इसलिए प्रदर्शन का काम धीमी गति से चल रहा है। वैसे अंदरखाने की बात यह है कि प्रदर्शनों के लिए सबसे बड़ा संकट आर्थिक है। प्रदर्शनों पर होने वाला खर्चा कौन वहन करे, यही सबसे बड़ा धर्मसंकट है। पुराने वाला दुबारा बनेगा नहीं तथा नये वाला तय नहीं है। वैसे राजनीतिक गलियारों में चर्चा यह भी है कि जिस दिन संगठन के चुनाव हो जाएंगे, उसके बाद प्रदर्शन भी ज्यादा होने लग जाएंगे। अब तो आने वाला समय ही बताएगा कि चर्चा कितनी सही साबित होती है।
टिकट की तैयारी 
टिकट किसको मिलेगी, किसकी कटेगी अभी तक यह तय नहीं है लेकिन चुनाव की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। संभावित उम्मीदवारों ने भी मेल मिलाप शुरू कर दिया है। खास बात तो यह है कि एक-एक विधानसभा से एक ही दल के कई नाम सामने आ रहे हैं। खास बात यह है कि सभी अपने समर्थकों को यह भी कह रहे हैं कि उनकी टिकट पक्की है। इधर नेताओं के समर्थक चक्करघिन्नी हैं कि वह किसकी बात पर कितना यकीन करें। हालांकि मतदाता रूपी समर्थक जरूरत से ज्यादा समझदार भी हैं। श्रीगंगानगर जिले के एक दो विधानसभा ऐसे हैं जहां उम्मीदवारों की फेहरिस्त लंबी होती जा रही है। अब इस तरह के माहौल में चटखारे लेने वालों की संख्या भी कम नहीं है। विशेषकर दूसरे दल वाले कितने विधायक कह-कह कर भी मजे ले रहे हैं। चुनावी समय नजदीक आने के साथ-साथ यह काम और गति पकड़ेगा और रोचक होगा इतना तो तय ही मानिए।
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में 09 नवंबर 17 को प्रकाशित

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