Thursday, November 16, 2017

सिर्फ अपना चेहरा चमकाने की चिंता

टिप्पणी,
नगर परिषद के सभापित व नगर विकास न्यास के चेयरमैन के बीच इन दिनों जबरदस्त प्रतिस्पर्धा चल रही है। यह प्रतिस्पर्धा है, खुद को इक्कीस साबित करने की। मौका दीपोत्सव का है, लिहाजा कोई पीछे नहीं रहना चाहता। दोनों के बीच बधाई देने की होड़ लगी है। शहर के प्रमुख चौक-चौराहे बधाई संदेश लिखे बड़े-बड़े होर्डिंग्स से बदरंग हो चुके हैं। अपना चेहरा चमकाने की इस होड़ में कई त्योहारों-पर्वों तक की बधाई एक साथ ही दे दी गई है। दोनों के बीच प्रचार प्रसार की लड़ाई का आलम यह है कि क्षेत्र चाहे यूआईटी का हो या फिर नगर परिषद का, दोनों ही मुखियाओं के होर्डिंग्स टंगे नजर आते हैं। मतलब खुद के प्रचार में किसी तरह का क्षेत्राधिकार नहीं है। और न ही क्षेत्राधिकार को लेकर कोई नियम आड़े आता है। 
हां बात रोडलाइट व टूटी सड़कों की हो तो दोनों मुखिया मामला क्षेत्राधिकार का बताते देर नहीं लगाते। भले ही दोनों मुखिया क्षेत्राधिकार की बात मानें या न मानें लेकिन इनकी कार्यप्रणाली से कभी-कभी यह जाहिर जरूर होता है कि यूआईटी व परिषद के कर्मचारी-अधिकारी इनके कहने में नहीं हैं या उनके निर्देशों को गंभीरता से नहीं लेते। वे वही करते हैं जो उनको करना होता। होर्डिंग्स टांगना या टंगवाना जरूर दोनों मुखियाओं केबस की बात है और इसमें वे सफल भी हैं। तभी तो गाहे-बगाहे या अवसर विशेष पर इनको टांग दिया जाता है। इस काम में जरा सी भी देरी नहीं होती है लेकिन बात जब काम की आती है। जनहित से जुड़े मसलों की आती है तो पता नहीं क्यों इन दोनों के पास कोई ठोस जवाब नहीं होता।
दीपोत्सव पर इनको खुद के चेहरे चमकाने की तो चिंता रही, लेकिन शहर के प्रमुख रास्ते व गलियां अंधेरे में डूबे हुए नजर नहीं आते हैं। श्रीगंगानगर का अधिकतर हिस्सा अंधेरे में डूबा रहता है। सीवेरज के कारण आधे शहर के रास्ते वैसे ही खुदे हुए हैं। सीवरेज लाइन के कारण तोड़ी गई सड़कों पर दिवाली पर नई सड़कें बनाने की बात भी अब तो आई-गई हो गई लगती है। अधिकतर रास्तों में अंधेरा पसरा है और रास्ते खुदे पड़े हैं। कितना बेहतर होता दोनों मुखिया अपने चेहरों की चिंता छोड़कर, प्रचार-प्रसार की भूख से ऊपर उठकर, होर्डिंग्स वार से बचते हुए गुटबाजी की राजनीति का चश्मा उतार कर समूचे शहर का भ्रमण करते। ऐसा करते तो उनको वास्तविकता का भी पता लगता। जनता का प्रतिनिधि या नुमाइंदा होने की सार्थकता भी तभी है, जब जनता के दुख तकलीफ को महसूस किया जाए तथा उनको दूर किया जाए। अभी भी दीपोत्सव में तीन चार दिन का समय शेष बचा है। दोनों मुखिया संबंधित विभागों के जिम्मेदार अधिकारियों-कर्मचारियों को पाबंद करें ताकि रोशनी के त्योहार पर शहर की किसी गली में अंधेरा न हो और आवागमन सुचारू हो।
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राजस्थान पत्रिका श्रीगंगानगर संस्करण के 16 अक्टूबर 17 के अंक में प्रकाशित 

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