Tuesday, November 14, 2017

कागजी आदेशों से नहीं बनेगी बात

 टिप्पणी 
बोर्ड व विश्वविद्यालय की परीक्षाआें को देखते हुए श्रीगंगानगर जिला प्रशासन ने मंगलवार को डीजे पर प्रतिबंध लगाने के आदेश जारी किए। आदेशों के अनुसार सुबह छह से रात दस बजे तक डीजे नहीं बजाया जा सकेगा जबकि रात दस से सुबह छह बजे तक डीजे के उपयोग पर पहले से ही प्रतिबंध चल रहा है। यह आदेश 31 मई तक प्रभावी रहेंगे। स्वाभाविक सी बात है कि इस तरह के आदेश इसलिए जारी करने पड़ते हैं क्योंकि डीेजे बजता है। बेरोकटोक, बेखटके, बेखौफ व बदस्तूर बजता है। तभी तो इस तरह के आदेश हर साल जारी करने की औपचारिता निभानी पड़ती है। औपचारिकता इसलिए क्योंकि आदेशों की पालना कभी कड़ाई से नहीं होती। केवल कागजी आदेश जारी होते हैं जिनको कोई गंभीरता से नहीं लेता। प्रतिबंध की पालना इसलिए नहीं होती क्योंकि इसकी अवहेलना करने वालों में किसी प्रकार का भय नहीं है। डर कैसा है इसकी बानगी तो श्रीगंगानगर में प्रतिबंध लागू होने वाले दिन ही पदमपुर-सूरतगढ़ रोड पर एक मैरिज भवन में देर रात तक बजते रहे डीजे से देखी और समझी जा सकती है।
दरअसल, डीजे आजकल एक तरह का शगल बन गया है। बिना डीजे के तो कोई मांगलिक काम संपन्न ही नहीं होता। डीजे ऊंची आवाज में बजता है, शोर प्रदूषण करता है यह तो जगजाहिर है लेकिन एक गंभीर बात यह भी है इन पर बज क्या रहा है? पंजाबी, हरियाणा व राजस्थानी में जो गीत बज रहे हैं क्या वे सेंसर हैं? कई गानों के बोल तो इतने आपत्तिजनक है कि वे सामाजिक समरसता के ताने-बाने पर चोट करते हैं। गानों के द्विअर्थी, अश्लील बोल समाज में जहर घोल रहे हैं लेकिन प्रशासन इन सब से अनजान हैं। कुछ स्थानों पर जागरूक लोगों ने पहल करके डीजे पर प्रतिबंध भी लगाया है। यह सब करने की जरूरत इसलिए पड़ती है क्योंकि डीजे पर बजने वाले विवादास्पद गीत ही झगड़ों का कारण बनते हैं। डीजे की वजह से गोलियां चल जाती हैं, मर्डर तक हो जाते हैं।
बहरहाल, प्रशासन को आदेश जारी करने तक ही सीमित नहीं होना चाहिए। कठोर कदम उठाते हुए कुछ कार्रवाई होनी चाहिए ताकि कानून का उल्लंघन करने वालों में कुछ डर पैदा हो। दूसरी बात डीजे पर बजने वाले गीतों की भी जांच होनी चाहिए कि उनमें क्या बज रहा है। उनके बोल कैसे हैं? सामाजिक सौहाद्र्र्र को प्रदूषित करने वाले तथा मान-मर्यादाओं की सरेआम चिंदी-चिंदी करने वाले गीतों पर भी डीजे के साथ रोक लगनी चाहिए। वरना आदेश जारी करने की रस्म निभाने से तो इस तरह के मामलों पर प्रतिबंध लगने से रहा।

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राजस्थान पत्रिका श्रीगंगानगर संस्करण के 2 दो मार्च के अंक में प्रकाशित

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