Tuesday, November 14, 2017

बयानों के भरोसे कब तक

पहला बयान :-
'मैं देश को आश्वासन देना चाहता हूं कि हमले के पीछे दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा. हमले में शहीद हुए जवानों को हम सैल्यूट करते हैं. राष्ट्र के लिए की गई उनकी सेवा हमेशा याद की जाएगी।'
-पिछले साल सितम्बर में कश्मीर में आतंकी हमले में 17 जवानों के शहीद होने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का बयान।
दूसरा बयान :-
'जवानों की शहादत व्यर्थ नहीं जाएगी. हम स्थिति पर नजर बनाए हुए हैं। हमें अपने जवानों पर गर्व है. उनकी शहादत को व्यर्थ नहीं जाने देंगे। इस हमले में घायल जवानों के जल्द से जल्द स्वस्थ होने की कामना करता हूं।'
- पिछले माह अप्रेल में छत्तीसगढ़ नक्सली हमले में 26 जवानों के शहीद होने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का बयान।
तीसरा बयान :-
'पाकिस्तान की यह हरकत अमानवीय है। ऐसी हरकत युद्ध के दौरान भी नहीं की जाती हैं। पूरे देश को सेना पर भरोसा है। सेना को जो प्रतिक्रिया करनी है, वह करेगी। जवानों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा।
-एक मई को कश्मीर में आतंकी हमले में दो जवानों के शव क्षत-विक्षत करने पर रक्षा मंत्री अरुण जेटली का बयान।
यह तीन बयान है। दो हमारे प्रधानमंत्री के हैं जबकि एक रक्षा मंत्री का। यह तीनों बयान पिछले नौ महीनों के दौरान आए हैं। इन तीनों बयानों में कई तरह की समानताएं हैं। मसलन, यह जवानों के शहीद होने के बाद आए हैं। इसमें जवानों की शहादत को याद किया गया तथा इन बयानों से देशवासियों को भरोसा भी दिलाया गया। आदि आदि। इसके बावजूद एक और खास बात है और वह कि जवानों की शहादत को व्यर्थ न जाने देने की। अमूमन इस तरह के बयान हर हमले के बाद आते हैं लेकिन देश को कभी शहादत को व्यर्थ न जाने देने वाले बयान का कारगर जवाब नहीं मिला। यह बात दीगर है कि कश्मीर हमले के बाद सेना द्वारा सर्जिकल स्ट्राइक तथा जवानों के शव क्षत-विक्षत करने के बाद जवाबी कार्रवाई करने की बात कही जा रही है। फिर भी बड़ा सवाल यह है कि जवानों के इस तरह शहीद होने का सिलसिला कब तक और क्यों?
दरअसल देशवासी अब नासूर हो चुकी इन समस्याओं का कारगर व स्थायी हल चाहता है। भले ही वह नक्सली हो या कश्मीर में आतंकी। दोनों समस्याओं के लिए बातचीत अब घिसा पिटा आजमाया हुआ तरीका हो चुका है। इस तरीके की भाषा न तो आतंकी समझते हैं और न ही नक्सली। ठीक वैसे ही जैसे लातों के भूत बातों से नहीं मानते। अतीत गवाह है 'कुत्ते की दुम' को सीधा करने के लिए कितने प्रयास किए जा चुके हैं लेकिन वह दुम कभी सीधी नहीं होती है। इस टेढ़ी दुम को सीधी करने के चक्कर में देश कई जवानों का बलिदान देख चुका है। इतने बलिदानों के बाद भी यह दुम सीधी नहीं हुई तो अब इसको काट देने में ही भलाई है। फैसला सरकार को लेना है। सेना को तो बस एक आदेश का इंतजार है।

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