Tuesday, November 14, 2017

और 'टाइगर' चला गया

बस यूं ही
रात सवा बारह बजे घर पहुंचा तो श्रीमती को मुख्य दरवाजे पर खड़े देखकर चौंक गया। अक्सर रात को उसको फोन करके जगाना पड़ता है तब दरवाजा खुलता है। खैर, उससे मुखातिब होते ही मेरा पहला सवाल यही था कि इतनी रात गए यहां कैसे? मेरा सवाल सुनकर वह जोर से हंसने लगी। कहने लगी बच्चे आज टाइगर लेकर आए हैं। नाम सुनकर मैं फिर चौंका। मेरा हाथ पकड़कर वह चौक के कोने में बनाए अस्थायी एक छोटे से घर की तरफ ले गई। मैंने देखा उसके अंदर एक पिल्ला सोया हुआ है।
चारों तरफ ईंटें लगाकर एक तरह से बाड़ा बनाया गया था। मैंने पूछा तो कहने लगी कि बच्चे शाम को पार्क से लौट रहे थे तो यह पिल्ला रास्ते में मिल गया। किसी गाड़ी की नीचे आ ही जाता पर बच्चों ने बचा लिया। मकान मालिक का पोता भुवन्यू व अपने दोनों बच्चे इस पिल्ले को पाकर बड़ा खुश हैं। भुवन्यू ने तो अपनी मम्मी से लड़ाई भी कर ली चाहे कुछ भी हो जाए वह पिल्ला घर में ही रहेगा। घर लाकर पिल्ले को बच्चों ने बाकायदा नहलाया। उसके लिए बाहर से ईंट लेकर आए और उसके लिए घर बनाया। अंदर पायदान बिछा दिया गया। प्लास्टिक के एक पात्र पर स्कैच से टाइगर फूड लिखकर रख दिया। मैं बच्चों की मेहनत देख मुस्कुराए बिना नहीं रह सका। सोचते-सोचते अतीत में चला गया। मैंने भी कितने पिल्ले पाले। एक- दो नहीं पूरे आठ पर जिंदा एक भी नहीं बचा। मैं बहुत रोता था। जब नया लेकर आता तब मां डांटती थी। फिर भी यह शौक कम नहीं हुआ। खैर, रात को खाना खाकर उठा तो देखा पिल्ले की आवाज आ रही है। गेट खोल कर बाहर गया तो देखा वह अस्थायी घर की दीवारें लांघ कर चौक में घूम रहा था। मैंने श्रीमती को उसी वक्त कह दिया था कि यह पिल्ला इस तरह नहीं रुकेगा। हुआ भी वही सुबह टाइगर जा चुका था। बच्चों के लटके हुए चेहरे देखकर मैं भी दुखी था। बच्चों को दिलासा देते हुए मुंह से बस यही निकला बच्चों टाइगर चला गया। बच्चों ने इधर-उधर काफी जगह देखा पर टाइगर वास्तव में चला गया था।

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