Tuesday, November 14, 2017

दाग धोने का मौका

टिप्पणी
श्रीगंगानगर शहर के लोग उस कार्रवाई को अभी भूले नहीं होंगे जब पुलिस ने सप्ताह भर सिलसिलेवार अभियान चलाया और निर्धारित समय के बाद खुलने वाले शराब ठेकों के खिलाफ कार्रवाई की थी। शराब कारोबार से ही जुड़ी एक और घटना तो ज्यादा पुरानी भी नहीं हुई है जब शराब ठेकेदारों से बंधी लेकर उनको मनमर्जी से शराब बेचने की इजाजत देने के आरोप में पुलिस थानेदार व आबकारी विभाग के दो नुमाइंदे रिश्वत लेने के आरोप में धरे गए थे। इन दोनों घटनाओं को हुए ज्यादा समय नहीं हुआ है। दोनों मामलों का जिक्र इसीलिए क्योंकि शहर व जिले में हालात इन दिनों कमोबेश वैसे ही हो गए हैं। सोमवार रात के दो घटनाक्रमों से इस बात को समझा जा सकता है। पहला मामला मीरा चौक का है, जहां शराब ठेके देर रात तक खुलने से परेशान लोगों ने पुलिस चौकी के सामने धरना दिया जबकि दूसरा मामला चहल चौक क्षेत्र का बताया जा रहा है, जहां निर्धारित समय के बाद भी शराब बेची जा रही थी। दरअसल, यह दो घटनाक्रम तो बानगी भर हैं, क्योंकि इस तरह की तस्वीर न केवल श्रीगंगानगर शहर बल्कि समूचे जिले की है। किसी भी मार्ग से गुजर जाओ। ठेके देर रात तक गुलजार ही मिलेंगे।
कानून विरुद्ध काम और निर्धारित से ज्यादा कीमत वसूलना यह दोनों ही काम एक साथ क्या बिना सरकारी संरक्षण या शह के संभव हैं? नियमों व कानून की पालना करवाने वाले क्या वाकई इतने लाचार मजबूर हो गए कि कोई उनको गांठता हीं नहीं है? या फिर जिम्मेदारों ने जुगलबंदी कर आंखों पर पट्टी बांध ली है? व्यवस्था में चूक के कारण इन दो तीन बातों के इर्द-गिर्द ही घूमते दिखाई देते हैं। हो सकता है कि शिकायत करने वालों को 'एेसा कोई मामला अभी तक तो जानकारी में नहीं आया है।' 'शिकायत मिली तो कार्रवाई करेंगे।' 'एक दो जगह शिकायत आई है, फिलहाल जांच करवा रहे हैं।' जैसे जुमले भी सुनने को मिले। क्योंकि यह जुमले उन सरकारी अधिकारियों के होते हैं, जो हकीकत से आंखें चुराते हैं। सच बताने से डरते हैं, इसलिए इस तरह के तकिया कलामों का सहारा लेते हैं। फिर भी सवाल जरूर कौंध रहे हैं कि आखिर कौन है जो निर्धारित मूल्य से ज्यादा कीमत वसूलने का भरोसा दे रहा है? कौन है जो निर्धारित समय के बाद भी ठेके खोलने की इजाजत दे रहा है? कौन है जो ठेकेदारों को एकजुट करके मनमर्जी की कीमत निर्धारित करने की छूट दे रहा है? कानून को ठेंगा दिखाकर इस तरह का दुस्साहस किया जा रहा है तो इस बात को बल जरूर मिलता है कि पर्दे के पीछे जरूर कोई सूत्रधार है।
बहरहाल, इस तरह के मामलों में पुलिस और आबकारी की भूमिका संदेह के घेरे में रहती आई है। आरोप भी खूब लगते हैं। फिलहाल इन दोनों ही विभागों के पास इस संदेह को साफ करने का मौका है। अब यह इन पर निर्भर करता है कि कौनसा रास्ता चुनते हैं। बंधी जैसे मामलों में बैकफुट पर आए दोनों विभाग अगर पर्दे के पीछे के सूत्रधार को सामने लाते हैं तो निसंदेह दागदार हुई छवि को सुधारने इससे बड़ा मौका और होगा भी क्या।

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राजस्थान पत्रिका श्रीगंगानगगर के 24 मई 17 के अंक में प्रकाशित 

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