Tuesday, November 14, 2017

बीकानेर के लोग और होली

मेरा दावा है कि राजस्थान में बीकानेर जैसी होली शायद ही कहीं देखने को मिले। पिछले साल बीकानेर की तणी तोड़ होली देखी थी। इस बार की होली श्रीगंगानगर में मनाई। रंग लगवाने व लगाने की परम्परा तो कमोबेश सभी जगह एक जैसी ही है लेकिन जिस मस्ती में जी कर तथा आनंद से सराबोर होकर बीकानेर के लोग होली मनाते हैं, उसका तो कहना ही क्या। हालांकि बीकानेर की होली के गीत व रसियों की गतिविधियां मर्यादाओं की परिधियां लांघ जाती हैं। फिर भी वहां के स्थानीय लोगों के यह सब आदत में आ चुका है। लिहाजा, उनको यह सब करना और देखना बिलकुल भी अजीब या अटपटा नहीं लगता। मस्ती व मनोरंजन के साथ जीना, साफगोई तथा आरामतलबी जैसी न जाने कितनी ही विशिष्टताएं बीकानेर के लोगों के खून में हैं। तभी तो बीकानेर के लोग कहीं पर भी हो अपनी छाप छोड़ते जरूर हैं। इतना सब कहने और भूमिका बांधने का सबब यही है कि श्रीगंगानगर में भी एक शख्स एेसा है जो बीकानेर की संस्कृति को जिंदा रखे हुए हैं। उम्र के सात दशक पार करने के बावजूद होली को शिद्दत से मनाने तथा उसको मस्ती एवं आनंद के उल्लास में जीने का अंदाज देखकर अच्छे खासे नौजवानों को भी इस 'युवा' से रस्क होता है।
बेहद हंसोड़ व जिंदादिल यह शख्स फरीद खान हैं । जी हां सेवानिवृत जनसंपर्क अधिकारी फरीद खान। मूलत: बीकानेर के रहने वाले हैं लेकिन घर श्रीगंगानगर में बना लिया है, लिहाजा संपर्क दोनों जगह ही है। पारिवारिक परेशानियों के चलते पिछले कुछ समय से इन्होंने खुद को खुद तक सीमित कर लिया था। हाल ही में राजस्थान पत्रिका में होली पर पुराने संस्मरण पर आधारित उनका साक्षात्कार प्रकाशित हुआ था। बस फिर क्या था उनके अंदर का कलाकार फिर से जाग उठा। शाम को फोन करके बाकायदा निमंत्रण दिया। उनके आग्रह को मैं टाल नहीं सका और सुबह कार लेकर पत्रकार कॉलोनी की तरफ चल पड़ा। यह कॉलोनी अभी भी विकसित नहीं हुई है। मुझे बताया गया पार्क तलाशने में थोड़ा वक्त लगा। मैं रस्ते में था कि फोन आया। सामने से मर्दाना आवाज थी लेकिन कोई महिला बनकर बोल रहा था। आवाज आई शेखावत जी मैं बबीता हूं बीकानेर से आपसे मिलने आई हूं। आप कहां मिलेंगे। चूंकि होली के दिन इस तरह के मजाक से मैं वाकिफ था लिहाजा मैंने भी मजाकिया अंदाज में ही जवाब दिया और कहा कि बबीता जी बीकानेर में भी बहुत शेखावत हैं, आपने श्रीगंगानगर आने का कष्ट क्यों किया। इतना कहते ही फोन कट गया। थोड़ी देर बाद फिर फोन आया। वो ही बात, अरे शेखावत जी, मैं बबीता बोल रही हूं आपने मेरा फोन कैसे काटा। मैंने हंसते हुए जी मैंने फोन नहीं काटा, आपकी आवाज आना बंद हो गई थी। खैर, फोन फिर कट गया। आखिरकार मैं कार्यक्रम स्थल पर पहुंचने में सफल रहा। वहां सारे ही अपरिचित चेहरे से एकबारगी तो मैं चौंका कि कहीं दूसरी जगह तो नहीं आ गया लेकिन बाद में फरीद खान जी के बेटे अमित से मुलाकात हुई। थोड़ी देर बात फरीद खान जी बड़ा सा पर्स लटकाए। टी शर्ट व स्कर्ट पहने पार्क में आए तो मेरी हंसी छूट पड़ी। आते ही उन्होंने आव देखा न ताव मुझे बांहों में भर लिया और कहने लगे देखो, आप बबीता से मिलने आ ही गए। पार्क में डेक पर होली के गीत बज रहे थे। फरीद खान जी के दो तीन रिटायर साथी भी वहां पूरे जोश व जुनून के साथ मैदान में डटे थे। दो तीन बार मुझे हाथ पकड़कर ले जाया गया लेकिन मैं केवल उनको प्रोत्साहित कर वापस आ जाता। करीब दो घंटे वहां रुकने के बाद मैं घर लौट आया, लेकिन फरीद खान की जिंदादिली व संजीदगी का कायल हो गया। उन्होंने पूरी कॉलोनी में जा जाकर महिलाओं को पार्क आने का निमंत्रण दिया। उनकी धर्मपत्नी व दोनों पुत्रों की पत्नियां भी वहां मौजूद थीं। वे बार-बार उनके पास जाकर नाचने को कहते लेकिन धर्मपत्नी तैयार नहीं हुई हालांकि मेरे के आने के बाद महिलाएं नाची थी लेकिन जब वे नाच नहीं रही थीं तो फरीद खान कहने लगे शेखावत जी, यह महिला सशक्तीकरण कागजों में ही है। सत्तर साल बाद भी इस तरह का शर्म संकोच किस काम का।
आज फेसबुक पर कल के कार्यक्रम के वीडियो देख रहा था तो सोचा क्यों न इस संस्मरण को शब्द दिए जाएं। वाकई फरीद खान जैसे शख्स ही हैं जिनके दम पर त्योहारों की अहमियत बढ़ जाती है। सच्चा हिन्दुस्तान एेसे ही लोगों के दिलों में बसता है। अल्लाह ताला फरीद खान साहब को लंबी उम्र दें। वे स्वस्थ रहें, दीर्घायु हों।

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