Tuesday, November 14, 2017

यह शहर है अमन का

टिप्पणी
यह शहर अमन का है तो सामाजिक समसरता का भी है। यह शहर साझा संस्कृति का है तो भाईचारे को जिंदा रखने वालों का भी है। यह शहर जोश व जज्बे वाले लोगों का भी उतना ही है, जितना इंसानियत व मानवता में विश्वास करने वालों का है। यह शहर अमनपसंद व मेहनतकश लोगों का है। यहां की सेवा भावना की तो अक्सर मिसालें दी जाती हैं। एक दूसरे के दुख-दुख दर्द में काम आना यहां के खून में है। खूबियों व खासियतों से परिपूर्ण इस तरह के शहर में शांति भंग होना किसके हित में है? कोई भी अफवाह भला यहां किसको राहत देगी? किसी तरह का भय व दहशत के माहौल में कौन चैन की सांस ले पाएगा? गणेश चतुर्थी जैसे पुनीत मौके के दिन जिस तरह सेशहर की शांति को भंग करने के मामले सामने आए हैं, वह न केवल चिंताजनक हैं बल्कि सोचने पर मजबूर भी करते हैं। पुरुषार्थ व परोपकार जैसे फलसफे में विश्वास करने वाले लोगों के बीच इस तरह की बातें खटकती हैं, कचोटती हैं। इस तरह के हालात में चुप बैठने के बजाय सद्भाव बढ़ाने के प्रयास और तेज होने चाहिएं। यह समय विश्वास को और ज्यादा प्रगाढ़ करने का है। यह समय प्रतिकूल परिस्थितियों का धैर्य के साथ सामना करने तथा और अधिक मजबूती से उठने का है। यह समय कानून व संविधान का सम्मान करने वालों के समर्थन का तथा व्यवस्था को बनाए रखने का है। यह समय सतर्क व चौकन्ना रहने का भी है। हम सब शहर के लोग हैं। हमेशा साथ-साथ रहते आए हैं। शहर का अमन-चैन हम सब की सामूहिक जिम्मेदारी है। भला यह कौन चाहेगा कि मन में खटास पैदा हो। दूरियां बढ़ें। क्योंकि यह शहर भी यहीं रहेगा और शहर के लोग यहीं रहेंगे। लेकिन एेसी कोई खाई हम सबके बीच न हो। हमारे सद्भाव व भाईचारे पर एेसा कोई धब्बा न लगे जो बाद में शर्मसार करे। जिसकी टीस जिंदगी भर हमको व बाद में आने वाली पीढि़यों को सालती रहे। हम तो हमेशा दूसरों का भला करने की सोचने वाले लोगों मंे से हैं। तुलसीदास जी ने कहा भी है- 
परहित सरिस धर्म नहीं भाई,
पर पीड़ा सम नहीं अधमाई।
मतलब दूसरे की भलाई के समान कोई धर्म नहीं है और दूसरे को कष्ट देने के समान कोई और अधर्म, कोई और पाप कोई और नीचता नहीं है। परहित को सर्वोपरि मानने के इस जज्बे को बनाए रखें, मानवता को जिंदा रखें। भाईचारे को कायम रखें। यही तो हम सब की पहचान है। बस कुछ दिन धैर्य बनाएं रखें और अफवाहों पर बिल्कुल भी ध्यान न दें। आपका आज का धैर्य ही इस शहर के अमन, यहां की परम्परा, संस्कृति और सभ्यता को जीवंत बनाएगा।
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 राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण के 26 अगस्त 17 के अंक में प्रकाशित 

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