Tuesday, November 14, 2017

...तो क्या हादसे केवल हाइवे पर ही होते हैं?

टिप्पणी,
श्री गंगानगर शहर के अंदर से गुजरने वाले नेशनल/स्टेट हाइवे पर अब शराब की दुकानें खुलेंगी। यह इसलिए संभव हो रहा है क्योंकि राज्य सरकार ने नियमों की आड़ में पतली गली ढूंढ ली है। नए नियमों के बहाने दलील दी जा रही है कि नगर पालिका या परिषद क्षेत्र से गुजरने वाले नेशनल/स्टेट हाइवे जिनके बाइपास हैं, उन पर शराब की दुकानें खुल सकेंगी। आदेशों के तहत श्रीगंगानगर के लक्कड़ मंडी टी पाइंट से लेकर सूरतगढ़ बाइपास तक, शिव चौक से नाथांवाला बाइपास तक तथा कोडा चौक से पदमपुर बाइपास तक शराब की दुकानें खोली जा सकेंगी। नए आदेश एक अप्रेल से लागू हो जाएंगे। इन आदेशों से यह तो साफ जाहिर होता है कि कमाई के लिए राज्य सरकार कुछ भी कर सकती है और किसी भी हद तक जा सकती है। एेसा इसलिए है क्योंकि नियमों को ठेंगा दिखाने, उनमें संशोधन करने या उनको घुमा फिराकर नए सिरे से परिभाषित करने की कलाकारी सरकार व उसके हुक्मरानों को बखूबी आती है। खैर, शराब दुकानों के मामले में राज्य सरकार द्वारा इस तरह और इतने समय बाद नियमों का तोड़ निकालने से एक नई बहस जरूर खड़ी हो गई है। साथ ही कई तरह के सवाल भी हैं, जो सरकार व हुक्मरानों को कठघरे में खड़ा करते हैं। नियम बनाने वाले यह क्यों समझते हैं कि शराब का सेवन करने से हादसे केवल हाइवे पर ही होते हैं। शराब पीकर शहरी क्षेत्र में गाड़ी चलाने वालों से तो हादसे होते ही नहीं या फिर नगरपालिका या नगर परिषद क्षेत्र से गुजरने वाले एेसे नेशनल और स्टेट हाइवे जिनके बाइपास बने हुए हैं उन पर ही वाहन चलते हैं, वो शहर के अंदर आते ही नहीं। नियमों की आड़ में निकाले गए इस तरह के आदेशों से तो यही जाहिर होता है कि हादसे केवल हाइवे पर ही होते हैं और जान का खतरा भी केवल और केवल हाइवे पर ही होता है। बाकी जगह शराब पीकर किसी भी तरह गाड़ी चलाओ, जानमाल का कोई खतरा नहीं है।
राजस्व के लिए सरकार किस हद पर तक जा सकती है। इसे इस बात से भी समझा जा सकता है कि जिस बाइपास का हवाला दिया जा रहा है वह अभी तक पूर्ण ही नहीं है। मुख्यमंत्री के उद्घाटन के बावजूद हाइवे का काम अभी तक अधूरा पड़ा है। अधिग्रहित की गई जमीन के बदले किसानों को मुआवजा वितरण अभी तक नहीं किया जा सका है। मुआवजा हुक्मरानों के बीच लंबे समय तक फुटबाल बना हुआ है। इस काम को पूर्ण करने के लिए शराब की दुकानों जैसी तत्परता दिखाई नहीं देती। हाइवे का अधूरा काम अगर तत्काल प्रभाव से भी शुरू होता है तो कम से कम छह माह पहले वह पूर्ण नहीं हो पाएगा।
बहरहाल, समूचे प्रदेश में शराब बंदी के लिए अनशन करने तथा जान की बाजी लगाने वाले शख्स के जिले में इस तरह नियमों की आड़ में दुकानें खोलना दिखाता है कि सरकार शराब के माध्यम से राजस्व प्राप्ति के लिए किस हद तक जा सकती है। यह फैसला शराबबंदी की मांग को मुखर करने वालों को ठेंगा भी दिखाता है और चिढ़ाता भी है। खैर, प्रतिबंध के बावजूद रात आठ बजे बाद शराब बेचने की अघोषित छूट की बात से इसको समझा जा सकता है कि सरकार को सिर्फ और राजस्व पसंद है, भले ही वह कैसे भी आए। जान जाती है तो चली जाए, अमन-चैन भंग होता है तो हो। सरकार को इससे सरोकार नहीं।

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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण के 25 मार्च 17 के अंक में प्रकाशित

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