Tuesday, November 14, 2017

कोढ़ में खाज

टिप्पणी
पार्क किसी भी शहर की खूबसूरती और विकास का आईना माना जाता है। पार्क से शहर की पहचान भी होती है। पार्कों की दशा ही उस शहर के जनप्रतिनिधियों व अधिकारियों की विकास के प्रति सोच के साथ-साथ यह भी बताती है कि वहां के लोग कितने जागरूक हैं। वैसे महज चारदीवारी के अंदर का भूखंड ही पार्क नहीं होता है। जहां हरी-भरी दूब, छायादार पेड़ व झूले आदि ही न हों, वह कैसा पार्क होगा समझा जा सकता है। पार्क वह, जहां पहुंचकर या बैठकर मन को सुकून मिलता है। जहां का स्वच्छ वातावरण और शुद्ध-ताजी हवा तन-मन में स्फूर्ति भरते हैं। जहां घर के समकक्ष आनंद की अनुभूति होती है। जहां बच्चे भरपूर मनोरंजन करें, मस्ती में खेलें तथा बुजुर्ग जी भर के बतियाएं आदि-आदि।
बदकिस्मती देखिए श्रीगंगानगर में कुछेक पार्क को छोड़कर कोई भी एेसा नहीं है जिसका नाम गर्व के साथ लिया जा सके या जिसका नाम लेते ही जेहन में सुखद एहसास हो। अधिकतर पार्क बदहाली के भंवर में फंसे हैं। प्रशासनिक उदासीनता के शिकार हैं। इन पार्कों की दशा देखकर मन में कोफ्त होती है। दुख होता है। व्यवस्था को कोसने को मन करता है। इन सब के बीच एक बात जो बेहद शर्मनाक होने के साथ-साथ अखरने वाली भी है, वह है बरसाती पानी को पार्कों में छोडऩे का फैसला। यह बरसाती पानी अगर सामान्य पानी हो तो कोई बात नहीं है लेकिन यह वह पानी है जो निकासी के अभाव में रास्तों में जमा होता है और प्रशासनिक अमला राहत के नाम पर मोटर लगाकर यह पानी पार्कों में खाली करवाता है। इन सब बातों को नजरअंदाज करके कि इस बरसाती पानी में नालियों का रोजमर्रा का मल-मूत्र व दूषित पानी भी मिला हुआ है। इस तरह का दूषित पानी पार्कों में छोडऩा कोढ में खाज के समान ही है। फौरी राहत के चक्कर में इस तरह करना उचित नहीं है। कल्पना कीजिए बदहाल पार्कों मंे इस तरह का दूषित पानी वहां के वातावरण को कितना प्रदूषित करेगा। शुद्ध ताजा हवा तथा सुकून की उम्मीद में पार्क में आने वालों को यह सब कितना अखरेगा। प्रशासनिक अमला इन सब से अनचान और अपनी खाल बचाने के लिए यह रास्ता लंबे समय से अपनाता आया है लेकिन यह सिलसिला कभी तो रुके। कभी तो ठोस समाधान हो।

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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण के 21 जून 17 के अंक में प्रकाशित 

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