Tuesday, November 14, 2017

कारगर कदम की दरकार

  टिप्पणी

हादसे कहीं पर भी हों और किसी भी तरह के हों वे तात्कालिक रूप से हड़कंप तो मचाते ही हैं। नतीजतन कुछ दिन के लिए हलचल भी होती है। लेकिन ऐसे मौके बहुत कम आते हैं, जब हादसे के पीछे की हकीकत उजागर हुई और दोषियों को दंड मिला हो। कुछ इसी तरह का हश्र शुक्रवार को हुए हादसे का हो जाए तो कोई बड़ी बात नहीं। इतिहास गवाह है और आशंका इसी बात की है कि जीप व ट्रक चालकों की गलती के पीछे वह गठजोड़ दब जाएगा, जिसके दम पर इस तरह ओवरलोड जीपों का संचालन होता है। इस तरह के उदाहरण भी कई हैं जब जिम्मेदारों की जीप चालकों साथ जुगलबंदी हो जाती है, तब इस तरह के हादसे सामने आते हैं। रस्मी तौर पर हादसों के बाद हरकत तो जरूर होती है लेकिन वह मुकाम तक नहीं पहुंच जाती है। कार्रवाई के नाम पर तात्कालिक रूप से हाथ-पैर चलाने के बाद व्यवस्था फिर उसी पटरी पर लौट आती है। लेकिन हादसों के कारणों पर कभी कारगर काम नहीं होता। हनुमानगढ़ के हादसे के बाद कोई बड़ी बात नहीं कि पुलिस व प्रशासन के नुमाइंदे और ज्यादा चाक चौबंद हो जाएं। कानून की शत-प्रतिशत पालना करते दिखाई दें। यातायात नियमों का पाठ पढ़ाते हुए नजर आएं। अवैध व ओवरलोडेड वाहनों के खिलाफ कार्रवाई करें। लेकिन यह सब क्या रोज नहीं होना चाहिए? पुलिस व प्रशासन के पास लंबी चौड़ी सूची होती है। इस सूची में कार्रवाई व राजस्व वसूलने के लंबे चौड़े आंकड़े दर्ज होते हैं। लेकिन इन सबके साथ एक समानांतर व्यवस्था इस तरह की बना दी गई है, जिसमें जिम्मेदारों को कानून का उल्लंघन करने वाले दिखाई नहीं देते। ब्रह्मास्त्र रूपी सुविधा शुल्क के आगे जानबूझकर आंखों पर पट्टी बांधकर कानून व नियमों की धज्जियां उड़ाने की छूट देने के उदाहरण कई हैं। ये अपने आसपास भी दिखाई दे जाएंगे। यह सुविधा शुल्क ही है जो कर्तव्य व फर्ज के मार्ग से विमुख करता है। जिम्मेदारों की जुबान पर ताला लगा देता है तो कार्रवाई करने की जगह हाथ तक बांध देता है। सुविधा शुल्क पाकर धृतराष्ट्र बनी व्यवस्था ही इस तरह के हादसों की जनक है।
बहरहाल, चालकों की चूक बताकर मामले को चलता कर दिया जाएगा लेकिन सवाल वहीं के वहीं हैं। दरसअल यह चूक जिम्मेदारों के धृतराष्ट्र बनने की वजह से हुई है। यह ऐसी चूक है जो चक्कों के नीचे चकनाचूर हुई जिंदगियों को वापस नहीं ला सकती। जब तक चूक के मूल कारणों चोट नहीं होगी तब तक इस तरह के गठजोड़ वाले हाथ हादसों को जन्म देते रहेंगे। नियमों को ठेंगा दिखाकर बनने वाली जुगलबंदी व उसका हिस्सा बनने वाले जिम्मेदार जब तक जांच के नाम पर बचाव के बहाने खोजते रहेंगे तब तक हादसे हमको डराते एवं चौंकाते रहेंगे।

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राजस्थान पत्रिका श्रीगंगानगर के 04 मार्च 17 के अंक में प्रकाशित

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