Wednesday, December 28, 2016

इलाज के नाम पर पीड़ा-2

कटु सत्य 
अगले दिन रविवार होने के कारण मैं 25 को जनवरी को दवा लेने ईसीएचएस पॉलिक्लिनिक पहुंचा। दवा वितरण कक्ष पर जाकर जैसे ही मैंने डाक्टर की पर्ची रखी तो वहां बैठे प्रतिनिधि ने कहा, पहले पर्ची कटवाओ। मैंने कहा पर्ची तो साथ लेकर आया हूं ना डाक्टर की। वह बोला यह नहीं रिसेप्शन पर नई पर्ची बनेगी। मैं पीछे मुड़ा तो काउंटर पर कोई नहीं था। पांच मिनट के इंतजार करने के बाद एक सज्जन आते हुए दिखाई। इससे पहले ख्याल आया क्यों ना इस नजारे का मोबाइल से वीडियो बना लूं। फिर यही सोचकर कि कहीं ख्वामखाह पंगा ना हो विचार बदल दिया। कुछ देर बाद काउंटर पर आते ही सज्जन ने कहा कि कार्ड दिखाओ। मैंने कहा कि कार्ड में तो मैं नहीं लाया, डाक्टर की यह पर्ची है। इतना सुनने के बाद उसने कहा नाम बताओ। मैंने पिताजी का नाम एवं पद बताया। उसने कार्बन लगाकर दो पर्ची काट दी। इसके बाद डाक्टर के पास जाने को कहा। 
मैं तेजी से डाक्टर के केबिन में घुसा। अंदर एक बुजुर्ग व गर्म कपडों से लकदक सज्जन को देखकर मैं चौंका। बड़ा सा हीटर भी लगा था। ऊपर बोर्ड देखा तो लिखा था मेडिकल ऑफिसर, डा..... , रिटायर्ड। मैं मंद-मंद मुस्करा रहा था। डाक्टरों की कमी यहां भी है। और कमान भी एक बुजुर्ग व सेवानिवृत्त चिकित्सक के हाथों में। उन्होंने भी कार्बन लगाकर दोनों पर्चियों पर वही नोट हुबहू कर दिया जो एमएन के चिकित्सक ने किया था। मैं दोनों पर्ची लेकर दवा वितरण केन्द्र पर पहुंचा। उसने दो तरह की टेबलेट एवं एवं गले में लगाने का बेल्ट दे दिया। मैं घर लौट आया। सप्ताह भर की दवा थी। 
तीन फरवरी को दवा खत्म हो गई थी। चार को व्यस्तता की वजह से मैं अस्पताल जा नहीं पाया। पांच फरवरी को पहले ऑफिस आ गया। इसके बाद घर श्रीमती को फोन करके कहा कि पर्ची पर डाक्टर के मोबाइल नंबर लिखे हुए हैं, उस पर कॉल करके पता कर लो कि वह अस्पताल में कितने बजे आते हैं। थोड़ी देर में उसने बताया कि साढ़े ग्यारह से साढ़े तीन बजे तक का टाइम है। करीब साढ़े ग्यारह बजे मैं कार्यालय से निकला और करीब दस मिनट बाद अस्पताल पहुंच गए। चूंकि पर्ची बनी थी इसलिए इसलिए अब ईसीएचएस दुबारा जाने की जरूरत नहीं थी। मैं सीधा डाक्टर के केबिन तक गया लेकिन वहां कोई नहीं था। पता किया तो बताया कि डाक्टर साहब आने ही वाले हैं। मैंने टाइम पूछा लेकिन किसी ने नहीं बताया। बस दस मिनट में आ रहे हैं, दस मिनट में आ रहे हैं यही जवाब मिलता रहा। इसके बाद रिसेप्शन पर बैठी युवती से डाक्टर के आने का समय पूछा तो उसने कहा बस आते ही होंगे। टाइम उसने भी नहीं बताया। मैं इस तरह के जवाबों से उकता गया। तभी मुमताज जी वहां घूमते हुए दिखाई दिए। मैंने खड़े होकर उनका नाम पुकारा तो वो मुड़े। मैंने कहा डाक्टर साहब कब तक आएंगे। तो बोले आने वाले हैं। टाइम हो गया है। मैंने कहा कि आप तो टाइम बताओ तो वो बोले साढे बारह बजे आते हैं। मैंने माथा पकड़ लिया। वापस श्रीमती को फोन लगाया और पूछा कि कहीं गलती से उसने साढ़े बारह को साढ़े ग्यारह तो नहीं सुन लिया लेकिन उसने फिर वही जवाब दिया, साढे ग्यारह से साढ़े तीन बजे। मैं सोच में डूबा था कि आखिर क्या करूं। इतने देर में डाक्टर के कक्ष में हलचल बढ़ी तो देखा तो डाक्टर की सहायक थी। मरीज उसके पास जा रहे थे। मैं भी चला गया। ईसीएचएस की तेईस जनवरी को पर्ची दिखाई तो बोली आप अपनी फाइल लेकर आओ। मैं सीधा ऊपर गया मुमताज जी के पास, क्योंकि फाइल उन्होंने ही रखी थी। वहां से जवाब मिला कि फाइल रिसेप्शन काउंटर पर है। मैं वहां आया और पर्ची युवती की तरफ बढ़ाई लेकिन उसकी दिलचस्पी नकद पैसे देकर रसीद काटने वालों में ज्यादा थी। मैं हाथ में पर्ची लिए खड़ा रहा लेकिन उधर कोई हलचल नहीं हुई। तभी बगल में बैठी दूसररी युवती ने कहा ईसीएचएस से रैफर है क्या? मैंने सहमति में सिर हिलाया तो उसने पर्ची मेर हाथ से ली और एक दूसरे व्यक्ति को दे दी। करीब दस मिनट बाद उसने फाइल बनाकर दी। 
मैं फाइल लेकर वापस डाक्टर के केबिन में चला गया। डाक्टर तब तक नहीं आए थे लेकिन सहायक मौजूद थी। मैंने फाइल दिखाई तो उसने खून की जांंच व ईसीजी करवाने के लिए लिख दिया। सप्ताह भर पहले जो जांच हुई वह दुबारा करवाई जा रही थी। खून की जांच के लिए लेबोरेट्री में गए तो बोले ऊपर से पर्ची बनावा कर लाओ। मैं इन पर्चियों के खेल से परेशान हो गया था। पर्ची दर पर्ची ने फुटबाल बना दिया था। मैं दौड़कर फिर ऊपर गया। मुमतातजी अपनी सीट पर थे। मैंने वह जांच लिखी पर्ची उनके आगे की तो उन्होंने एक रसीदबुकनुमा छोटी से पुस्तिका उठाई और कार्बन लगाकर जैसे ही लिखने लगे मोबाइल बज उठा। पैंट की जेब टटोलते हुए उन्होंने मोबाइल निकाला और कान के लगा लिया। संभवत: बात वन रैंक वन पेंशन योजना को लेकर थी। मैं अभी खड़ा ही था, बात-करते-करते हुए उन्होंने मेरे को बैठने का इशारा किया। मोबाइल पर हंसी-हंसी ठहाके लग रहे थे। साथ में बताया जा रहा था कि सरकार इतनी जल्दी नहीं देनी वाली। फौजियों की कौन सुनता है। फौजी तो बावळी .@@@@... होते हैं। किसी तरह वह वार्तालाप खत्म हो गया। लेकिन थोड़ी देर में फिर घंटी बज उठी। इस बार किसी शादी की बात हुई। लेकिन बाद में मुद्दा फिर पूर्व सैनिकों पर आ गया। यकीनन सामने वाला भी कोई पूर्व सैनिक ही था। मैं कुर्सी पर सामने जरूर बैठा था लेकिन मुंह फेरे हुए यह प्रदर्शित करने का प्रयास कर रहा था कि मैं फोन पर हो रहे इस वार्तालाप से खुश नहीं हूं। आखिरकार फोन बंद हुआ। इसके बाद दो पर्ची बनी उनको लेकर मैं आया। इसके बाद खून की जांच हुई। बताया गया कि रिपोर्ट दो बजे मिलेगी। फिर ईसीजी में गए। वहां मैंने नर्सिंगकर्मी से पूछा कि इस रिपोर्ट में क्या है तो उसने अनभिज्ञता जताते हुए कहा कि डाक्टर साहब ही बता पाएंगे। क्रमश:

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