Wednesday, December 28, 2016

धन, धान व धर्म की धरती


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टिप्पणी 
नि संदेह यह प्रदेश का सबसे समृद्ध व संपन्न जिलों में से एक है। इस सरसब्ज जिले में सद्भाव की सरिता बहती है तो आधुनिकता व पुरातन परम्पराओं का गजब समावेश भी है। यहां कई संस्कृतियों का संगम है तो सेवा करने का अनुकरणीय जज्बा भी। इतनी खूबियों एवं खासियतों को अपने अंदर समेटने के बावजूद राजनीतिक फलक पर अक्सर श्रीगंगानगर की उपेक्षा ही हुई है। इन सब बातों के अलावा श्रीगंगानगर के साथ एक अनूठा संयोग भी जुड़ा है। यह संयोग है 'ध' से विशेष लगाव। हिन्दी वर्णमाला का 19वां अक्षर यहां की संस्कृति में इतना रच बस गया है कि अब श्रीगंगानगर की पहचान ही इससे होने लगी है। इस जिले का धूप से इतना गहरा नाता है कि गर्मियों में तामपान 48 डिग्री से पार हो जाता है। कमोबेश इससे ठीक उलट सर्दियों में होता है जब तापमान शून्य से नीचे होता है और धुंध की वजह से सप्ताह भर तक सूर्यदेव के दर्शन तक नहीं होते। 'ध' से ही धूल है तो 'ध' से ही धुआं। कृषि में सिरमौर होने के कारण किसानों का धूल से ही वास्ता पड़ता है। पड़े भी कैसे नहीं आखिर धोरों की धरती को उन्होंने खून पसीना बहाकर सोना उगलने वाली भूमि जो बना दिया है। जिले में कहीं पहाड़ी न होने के कारण यहां ईंट भट्ठों का कारोबार बहुतायत में है। श्रीगंगानगर धान का कटोरा है तो धर्म की नगरी भी। यह धनकुबेरों का जिला है, तभी तो इसकी समूचे प्रदेश में अलग तरह की धाक है। धर्म-कर्म तो यहां के जर्रे-जर्रे में है। यहां के लोग इतने हरफनमौला है कि किसी न किसी विधा में धमाल करते रहते हैं। इन सबके बावजूद विडम्बना यह है कि आधुनिकता की चकाचौंध में धड़ाधड़ आगे बढ़ते श्रीगंगानगर की युवा पीढ़ी धीमे जहर (नशा) की गिरफ्त में आ रही है। इस धीमे जहर का धंधा यहां धड़ल्ले से फल-फूल रहा है। इससे भी चिंताजनक यह है कि सद्भाव व स्नेह की नींव पर खड़ी इस जिले रूपी इबारत में धोखे का कारोबार सेंध लगाकर इसे धराशायी करने का दुसाहस कर रहा है। इस धरती के लोगों का धीरज धीरे-धीरे जवाब दे रहा है। उसकी जगह अब गुस्सा घुसपैठ करने लगा है। आदमी का आदमी के प्रति विश्वास कम हो रहा है। गलतफहमी इस कदर घर कर चुकी है कि रिश्तों का कत्ल होते देर नहीं लगती। कई तरह के अपराध भी शांति की अग्रदूत रही इस धरा पर पैर पसार रहे हैं। बहरहाल, श्रीगंगानगर स्थापना दिवस के पुनीत मौके पर हम सबको इस बात का संकल्प जरूर लेना चाहिए कि जिले के गौरव व संस्कृति को नुकसान पहुंचाने वाले तमाम तरह के तत्वों के खिलाफ एकजुट होकर लड़ेंगे। चाहे वो सामाजिक कुरीतियां हों या फिर सद्भाव को प्रभावित करने के कुत्सित प्रयास। नशे का कारोबार हो या एक दूसरे के प्रति कम होता विश्वास। स्थापना दिवस मनाने की सार्थकता भी तभी है जब हम यहां के सद्भाव व सेवाभाव को बनाए रखने के साथ साथ तमाम तरह की विकृतियों/ कुरीतियों के खिलाफ एकजुट होकर शपथ  लें।
26 अक्टूबर 16 के श्रीगंगानगर संस्करण में प्रकाशित ..

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