Wednesday, December 28, 2016

गजल

कल रविवार देर रात व्हाट्स एप पर बातों ही बातों में एक शेर बन गया। इसको फेसबुक पर साझा किया तो कद्रदानों ने बेहद पसंद किया। यही वजह रही कि शेर को गजल बनाने बैठ गया। बस दस मिनट में जोड़ तोड़ करके बना ही दी। आप भी देखें...
हाथ जोड़ लिए मैंने...
जहां मुंह देखकर तिलक लगाए जाते हैं,
उस दर के दस्तूर निभाने छोड़ दिए मैंने।
जहां अपने-पराये का होता रहा भेद सदा,
उस घर से रिश्ते सारे तोड़ लिए मैंने।
पग-पग पर बिकने के इस दौर में आखिर,
ईमान की खातिर ना एक ना करोड़ लिए मैंने।
सच को सच कहने का साहस रखने के खातिर,
छल, फरेब, मक्कारी के रस्ते सारे मोड़ दिए मैंने।
रिश्तों में ना आए कभी कड़वाहट कोई 'माही'
यही सोचकर छोटों के आगे हाथ जोड़ लिए मैंने।

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