Wednesday, December 28, 2016

यह डर खत्म कीजिए

 टिप्पणी
शहर के बीचों-बीच तथा अक्सर व्यस्त रहने वाले चौराहे के पास से एटीएम उखाडक़र ले जाने की वारदात पुलिस अधिकारियों के लिए निंसदेह चिंता का विषय है। साथ में अपराधियों की धरपकड़ करना एक बड़ी चुनौती भी है। चूंकि अपराध हर जगह है लेकिन उनका तरीका अलग-अलग होता है। बीकानेर में एटीएम तोडऩे व लूटने आदि की वारदातें पहले भी हुई हैं लेकिन इस तरह की वारदात अपने आप में पहली है। इस अंदाज में एटीएम लूटना पुलिस को मांद में मात देने के समान ही है। वैसे चालू पखवाड़ा पुलिस के लिए परेशानी भरा ही रहा रहा है। अपराधों का आंकड़ा भी अचानक बढ़ गया है। सरेआम गोलियां चल रही हैं। लूट हो रही है। राह चलते गाडिय़ां तक छीनी जा रही है। यह वारदातें पुलिस की सक्रियता पर सवाल उठाती हैं। अपराध का यह चेहरा आम आदमी को डराता है। चौंकाता है। वह अनहोनी की आशंका में सहमा हुआ है। वह घर से निकलते हुए घबराता है। वह भयभीत भी है। पुलिस का स्लोगन, आमजन में विश्वास, अपराधियों में भय उसे अब बेमानी लगता है। बीकानेर की हालिया घटनाओं के मद्देनजर यह स्लोगन प्रासंगिक नहीं 
लगता है। उसकी प्रासंगिकता को बनाए रखना समूचे पुलिस महकमे के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है। 
दरअसल, इस प्रकार की वारदातों का हो जाना कोई संयोग नहीं है। ये अकस्मात भी नहीं होती है। इनके पीछ़े कहीं न कहीं कोई चूक जरूर होती है। अक्सर देखा गया है कि छोटी-छोटी बातों को नजरअंदाज करना ही इस प्रकार की वारदातों की वजह बनती है। सबसे बड़ी बात यही है कि पुलिस महकमा छोटी-मोटी शिकायतों पर तो हरकत में ही नहीं आता है। सारा शहर जानता है कि बीकानेर में देर रात तक शराब की बिक्री होती है। पुलिस के फेसबुक पेज पर भी कई लोगों ने इस संबंध में शिकायत दर्ज कराई है। फिर भी शराब की बिक्री बदस्तूर जारी है। कौन करवा रहा है यह बिक्री? कौन है जो पुलिस से भी नहीं डरता? यह सवाल आम आदमी के जेहन में उठते हैं। आमजन में विश्वास जगाने, बेहतर तालमेल व सामंजस्य के लिए होने वाली सीएलजी की बैठकें कब होती हैं, कब खत्म होती है, इस बात की जानकारी सिर्फ सीएलजी सदस्यों एवं संबंधित थाने के अलावा किसी को नहीं होती। इन बैठकों में किस तरह के सुझाव आते है, उन पर कितना काम होता है। यह इन दोनों पक्षों के अलावा तीसरा कोई नहीं जानता। जनता से जुड़े कामों में इतना पर्दा क्यों? सीएलजी बैठकों की प्रासंगिकता ही 
क्या है फिर। बीट प्रणाली भी कागजों तक सीमित हो गई है। शहर में कौन आया, कौन गया। होटलों में कौन ठहरा, कब ठहरा आदि की जानकारी भी ठीक से नहीं की जाती।
सब जानते हैं और मानते भी हैं कि चमत्कार को ही नमस्कार होता है। बिना कुछ किए कभी जय-जयकार नहीं होती। लेकिन बीकानेर में तो बिना कुछ किए ही जय-जयकार की परिपाटी चल रही है। पदभार ग्रहण करते ही स्वागत सत्कार का दौर शुरू हो जाता है। बाकायदा अभिनंदन होता है। कौन हैं ये अभिनंदन करने वाले? किस बात का अभिनंदन कर रहे हैं? किस उपलब्धि पर अभिनंदन कर रहे हैं? यह सवाल कचोटते हैं। अभिनंदन करना/ करवाना बुरा नहीं है लेकिन बिना वजह ही होता है तो फिर सवाल उठने लाजिमी है। आपके पूर्ववर्ती अधिकारियों ने तो एक अलग ही तरह परंपरा शुरू की थी यहां। यह परंपरा थी थानों के सौन्दर्यीकरण की। कौन थे पैसे देने वाले? उन्होंने इस तरह के निर्माण में दिलचस्पी क्यों दिखाई? यह राज अब तक राज ही है। सीमावर्ती जिला होने के कारण बीकानेर वैसे ही संवदेनशील है। हथियार तस्करी के मामले तो गाहे-बगाहे सामने आते रहते हैं। जुए सट्टे के मामले भी लगातार उजागर होते रहे हैं। 
बहरहाल, अब चूक पर चर्चाएं होंगी, तो तंत्र पर लगे तमाचे को तमाम तरह के तर्कों से कम करने की तसल्ली दी जाएगी। लापरवाही पर लगाम लगाने की बातें होंगी तो गफलत बरतने एवं गलती करने वालों पर गाज गिराई जाएगी। बड़ी बड़ी बातों एवं बयानों की बाढ़ आएगी तो मनोबल मजबूत करने की मुहिम भी चलाई जाएगी। कड़ी कार्रवाई करने एवं कारगर कदम उठाने की कवायद होगी। खैर, कुछ भी हो लेकिन आमजन में विश्वास जमाना सबसे ज्यादा जरूरी है। जनता का डर खत्म करना पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। कंट्रोल रूम जैसी बेहद संवदेनशील जगह को तो चौबीस घंटे चाक चौबंद एवं चुस्त 
दुरुस्त रखने की जरूरत है। शिकायतों को हल्के में लेने की प्रवृत्ति को त्यागना होगा अन्यथा इस तरह की वारदातें पुलिस को पस्त करती रहेंगी।
राजस्थान पत्रिका बीकानेर के 01 मार्च 16 के अंक में प्रकाशित...

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