Wednesday, December 28, 2016

क्रिकेट : रहा भी ना जाए, सहा भी ना जाए


पता है कि मैं अब नियमित बिलकुल भी नहीं खेलता हूं। यह भी मालूम है कि कभी खेल लिया तो फिर चार पांच दिन तक शरीर का प्रत्येक हिस्सा दर्द करेगा। यह भी जानता हूं कि इस असहनीय दर्द को काबू में करने के लिए फिर दर्द निवारक टेबलेट की जरूरत पडेगी। इन सब से वाकिफ होने के बावजूद कभी कभार खुद को रोक नहीं पाता हूं। आज भी ऐसा ही हुआ। ऑफिस की इन हाउस क्रिकेट प्रतियोगिता थी। मैं लोभ संवरण नहीं कर पाया। सलामी बल्लेबाज के रूप में सात चौकों की मदद से 42 रन बनाए। सातवें ओवर में जब आउट हुआ तब टीम का स्कोर 75 रन पहुंच चुका था। आखिरकार हमारी टीम ने निर्धारित बारह ओवर में 107 रन बनाए। प्रतिस्पर्धी टीम ने भी बेहतर खेल दिखाया लेकिन पूरी टीम 84 रनों पर आलआउट हो गई। क्षेत्ररक्षण अपनी परंपरागत जगह (विकेट कीपिंग) करते हुए दो कैच लपके तो एक खिलाडी को स्टपिंग भी किया। मैच जब कांटे का बनता नजर आया तब गेंदबाज की भूमिका भी निभानी पडी। तीन ओवर की गेंदबाजी में मात्र आठ रन देकर दो विकेट हासिल किए। एक खिलाडी का कैच तो पोलोथ्रू में लपका। विकेटों का आंकडा और भी बेहतर होता अगर क्षेत्ररक्षकों ने तीन कैच ना टपकाए होते। खैर, जीत तो जीत होती और हमारी टीम ने जीत हासिल की। लंबे समय से नियमित क्रिकेट से दूर होने व तेज धूप के कारण खेलने में दिक्कत तो हुई लेकिन सब सहन कर लिया।

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