Wednesday, December 28, 2016

मुक्तक -2

1
 रिश्ते निभाने की आदत मैं खास रखता हूं।
अजनबी शहर में अपनों की तलाश करता हूं,
यायावरों सा जीवन है, फिर भी चलते जाना,
शहर दर शहर जिंदा मैं यही आस रखता हूं।
2
परायों को अपना बनाने की फितरत है मेरी,
अजनबियों में पहचान बनाना आदत है मेरी।
पूछती होगी पैसे वालों को दुनिया दोस्तो,
फकत दोस्तों की दुआएं ही दौलत है मेरी।
3.
नाना रूप हैं उस छलिये के, भांति-भांति के नाम,
कोई कहे गोपाल उसे तो, कोई पुकारे घनश्याम।
कहीं परम सखा हैं वो, तो कहीं पर माखनचोर,
उस चितचोर की मधुर छवि, हरती कष्ट तमाम।
4.
देश की सियासत चलती है इनके काम पर बाबा
सरकारें बनती-बिगड़ती है इनके नाम पर बाबा,
बाबाओं की माया देश में, बाबाओं के हैं चर्चे,
सच बोलकर अपने सिर इल्जाम लगाऊं ना बाबा।

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