Wednesday, December 28, 2016

तुम्हारी भी जय जय, हमारी भी जय-जय

एक टीवी चैनल पर कथित देश विरोधी कवरेज दिखाने के आरोप में नौ नवंबर को प्रस्तावित कार्रवाई स्थगित कर दी गई है। कार्रवाई स्थगित करने के कारगर कारण तो सरकार या उसके नुमाइंदे ही बता सकते हैं लेकिन जो बात सामने आ रही है वह यह है कि सरकार ने चौतरफा विरोध को देखते हुए यह काम किया है। जो भी हो चैनल बैन करने के निर्णय का विरोध दर्ज करवाने वाले आज खुश हैं। सोशल मीडिया के प्रमुख माध्यम फेसबुक व व्हाट्स एप पर ब्लेक की गई डिपी भी वापस रंगीन होने लगी है। पर लगता नहीं कि सरकार निर्णय स्थगित करने के वास्तविक कारणों का खुलासा करेगी लेकिन मेरे जेहन में कुछ सवाल जरूर खदबदा रहे हैं। यकीनन मेरे जैसे हालात कइयों के होंगे। मसलन, यह कार्रवाई का फरमान सुनाया ही क्यों गया? सुनाया गया तो इतना देरी से क्यों? जो मैसेज जाना था वह तो लाइव रिपोर्ट से जा चुका था। अब एक दिन बंद करने से उसकी भरपाई कैसे हो जाती?
खैर, जो भी कारण रहे इस फैसले को लेकर भी लोग दो भागों में बंटे नजर आए। किसी ने समर्थन में सुर मिलाए तो किसी ने फैसले की जोरदार खिलाफत की। अब फिर निर्णय स्थगित करने को भी दो तरीके से देखा जा रहा है। सुर में सुर मिलाने वालों की दलील हो सकती है कि सरकार का काम संबंधित चैनल को एहसास करवाना था और वह काम एेसा करने से हो गया। साथ ही इस बहाने एक संदेश भी सभी चैनलों को दे दिया गया। लगे हाथ सरकार ने यह भी जान लिया कि कौन उसके समर्थन में है और कौन नहीं। इधर बैन के विरोध करने वाले इसे जीत प्रचारित कर रहे हैं। कह रहे हैं कि सरकार ने देशव्यापी दबाव को देखते हुए अपने कदम वापस खींच लिए।
बहरहाल , मेरे को इस समूचे घटनाक्रम में दोनों ही पक्षों की जीत लग रही है। एक वो पक्ष है जो तात्कालिक रूप से अपनी बढ़त को जीत मान रहा है जबकि दूसरे पक्ष ने इसके दूरगामी फायदे को न केवल बखूबी पहचान लिया है बल्कि एक तीर से कई तरह के निशाने भी साथ लिए हैं। इसलिए इस मामले में किसी एक पक्ष को जीता व एक को हारा हुआ नहीं माना जा सकता है। ठीक तुम्हारी भी जय-जय, हमारी भी जय-जय। ना तुम जीते ना हम हारे की तर्ज पर। और हां दो धड़ों में विभक्त हुई इस लड़ाई में समर्थक अपने-अपने हिसाब से व्याख्या करेंगे लेकिन जो ना इधर गए ना उधर गए और चुपचाप इस बड़े 'ड्रामे' को देख रहे थे उनका भरपूर मनोरंजन हो गया है। तटस्थ दर्शकों ने समर्थन व विरोध के विचारों एवं शब्दों की जुगाली का जी भर के लुत्फ उठाया है। हां समय खराब जरूर हुआ। खैर, जहां मनोरंजन हो वहां समय मायने भी नहीं रखता।

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