Wednesday, December 28, 2016

कड़वा घूंट-2

🔹एक जैसा हाल
राजनीति में अक्सर लाभ तलाशे जाते हैं। इस चक्कर में दल बदलने में भी गुरेज नहीं किया जाता। अच्छे भविष्य की चाह में वर्तमान से खिलवाड़ तक कर लिया जाता है। वैसे दल बदलने का यह काम चुनावों के मौसम में ज्यादा होता है, लिहाजा कई बार तो सफल भी हो जाता है लेकिन कइयों के लिए यह सौदा महंगा भी साबित होता है और हालात ‘खुदा ही मिला ना विसाले सनम, ना इधर के रहे ना उधर...’ वाले हो जाते हैं। बीकानेर में भी पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा-कांग्रेस के दो नेताओं ने बड़ी उम्मीद और कुछ पाने के चक्कर में अपने-अपने दल बदले थे। चुनाव हुए ढाई साल बीत गए लेकिन दोनों के हालात कमोबेश एक जैसे हैं। पिछले दिनों संयोग से दोनों नेता आपस में टकरा गए। दोनों एक-दूसरे को देख कर मुस्कुराए और हाल चाल जाने। मजे की बात यह है कि दोनों का जवाब एक जैसा ही था। वैसे भी दोनों नेताओं के साथ पुरानी पार्टी के लोग ही ज्यादा नजर आते हैं। इनकी कसमसाहट को देखते हुए राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि दोनों को आपस में अदला-बदली कर लेनी चाहिए।
🔹कमाल का ऑफर
बीकानेर शहर में सडक़ किनारे दीवार निर्माण का काम हाल ही में खासा चर्चा में रहा। सबसे बड़ी बात यह कि इस मामले में सभी विभागों की चुप्पी चौंकाने वाली रही। काम चलता रहा लेकिन जिम्मेदारों के हाथ कार्रवाई करने से हिचकिचा गए, लिहाजा नोटिस देकर इतिश्री कर ली गई। इधर निर्माण करने वाले बेखौफ होकर दीवार का निर्माण करते रहे। एक-दो जागरूक लोगों को यह निर्माण खटका तो उन्होंने इसकी शिकायत बाकायदा फोटो सहित मीडिया कार्यालयों में भी कर दी, लेकिन पत्रकारिता का धर्म इक्का-दुक्का ने ही निभाया। खबरें सार्वजनिक हुई तो विभाग के अधिकारियों के कान खड़े हुए। पहले तो संबंधित मीडिया कार्यालयों में फोन करके विरोध जताया गया। बात नहीं बनी तो कई तरह के ऑफर की पेशकश की जाने लगी। अनुशासन को सर्वोपरि रखने वाले विभाग के अधिकारियों का व्यवहार व सोच अखरने वाली है। वैसे वो अधिकारी बार-बार इस निर्माण को सुरक्षा की दृष्टि से महत्वूपर्ण बताकर अपनी दलील देते रहे लेकिन उनके ऑफर ने मामले को संदिग्ध जरूर बना दिया।
🔹पर्दे के पीछे का सच
सरकारी विभागों की जांच से जुड़े कई पहलू सामने नहीं आते हैं लेकिन जब आते हैं तो चौंकाते हैं। ऐसे ही चौंकाने वाले कुछ बिन्दु पिछले दिनों दो भुजिया कारोबारियों के यहां हुए सर्वे में सामने आए। मजे की बात यह है कि एक व्यापारी तो अपने उत्पाद को बनाने के लिए गुणवत्ता वाले तेल का उपयोग करने की दुहाई देते नहीं थकते, लेकिन सर्वे में जो कागजात एवं तेल मिला है वह गुणवत्ता में कमजोर एवं अपेक्षाकृत सस्ता होता है। व्यापारी की इस सत्यावादिता के आगे सर्वे करने वाले अधिकारी एवं जानकार लोग चकित हैं। इसी तरह दूसरे व्यापारी के घर में जांच के दौरान तो सर्वे करने वाले अधिकारी भी सकते में आ गए। वहां फर्श और दीवारों में कागजात व पैसे इत्यादि छुपा कर रखे हुए बताए गए। बड़ी बात तो यह सामने आई कि इन कागजात एवं पैसे की जानकारी परिवार के सदस्यों को भी आपस में नहीं थी। मतलब उन्होंने यह सब काम दूसरे से छिपाकर किया।
🔹संबंधों का सहारा
अक्सर देखा जाता है कि संकट के समय ही किसी मददगार की तलाश की जाती है ताकि कुछ राहत मिल जाए। पुलिस से संबंधित मामलों में तो संबंध रामबाण औषधि माने जाते हैं। प्रभावित लोगों का प्रयास किसी बड़े अधिकारी से संपर्क साधकर तथा संबंधों का हवाला देकर मामले में राहत पाने का होता है। यही हाल संभाग के एक अधिकारी का है। लोग दस साल पुराने संबंध निकालकर उनके पास पहुंच जाते हैं। ऐसे में किसी मामले की जांच बदलती है तो किसी की शुरू होती है। खैर, संभाग के यह अधिकारी महोदय संबंधों की वजह से तो चर्चा में हैं ही, इनकी लिखी गई किताब के भी इन दिनों अच्छे खासे चर्चे हैं। किताब का पिछले दिनों विमोचन किया गया था। इसकी कीमत इतनी ज्यादा है कि आम आदमी तो खरीदते हुए ही सौ बार सोचेगा। किताब का कोई आशातीत रिस्पॉन्स नहीं मिलने पर इसकी सेल बढ़ाने का उपाय खोजा गया। बताते हैं कि किताब को खरीदने के लिए ‘अपने’ ही लोगों को मौखिक रूप से कहा गया है। मामला अधिकारी का है, इसलिए कोई मातहत मुंह खोलने को भी तैयार नहीं है। भले ही किताब उनके काम की हो या नहीं हो।
🔹बातूनी
 राजस्थान पत्रिका बीकानेर के 06 मार्च 16 के अंक में प्रकाशित साप्ताहिक कॉलम ....

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