Wednesday, December 28, 2016

मुद्दे, मौसम और सियायत

टिप्पणी

जोर-शोर से उठा मुद्दों का मौसम अब लगभग शांत हो चुका है। पर चर्चाएं जारी है। पहले से भी ज्यादा तीखी और मुखर। साथ में चटखारे भी जुड़ गए हैं। यह कहीं जले पर नमक छिड़क रहे हैं तो कहीं थकावट दूर करने का कारगर तरीका हैं। नए जुमले गढ़े जा रहे हैं। कुल मिलाकर कल तक के गंभीर मुद्दे, उम्मीद व आस अब पूरी तरह मनोरंजन में तब्दील हो चुकी है। नफा-नुकसान का आकलन भी होगा। सियासी समीकरणों की नए सिरे से व्याख्या की जाएगी। किसने क्या खोया किसने क्या पाया इस पर भी माथापच्ची होगी। जी हां, यह परिदृश्य इन दिनों बीकानेर का है।
राज्य स्तरीय गणतंत्र दिवस समारोह का स्थान तय होने के दिन से शुरू हुई बीकानेर के विकास की बातें २६ जनवरी आते-आते चरम पर थी। यह जरूर है कि इसके बीच जनता केवल आस ले खामोश ही रही। समारोह की तैयारियों के चलते सभी जगह नहीं तो भी काफी काम हुए। यह बात दीगर है कि गुणवत्ता पर भी सवाल उठे। बावजूद इसके सड़कें सुधरी, सर्किलों का सौन्दर्यीकरण हुआ। बस स्टॉपेज पर कुर्सियां आईं। रोडलाइट सुधरी। दीवारों पर रंगरोगन हुआ। मात्र माहभर में ही करोड़ों खर्च हो गए। क्या बिना समारोह इसकी कल्पना की जा सकती थी? बीकानेर की लंबित उम्मीदें पूरी होने की आस में दिग्गज कांग्रेस नेता भी कूद पड़े। बड़ी लड़ाई का ऐलान तक कर दिया। कहीं न कहीं एयरपोर्ट उद्घाटन में मिली तवज्जो जहन में रही होगी। जन मुद्दों के लिए आंदोलन जायज व जरूरी है, लेकिन मौसम और मौका भी नहीं देखा गया। बिन मौसम तो बरसात भी नहीं होती। यहां भी ऐसा ही हुआ। तवज्जो ही नहीं मिली। समारोह हो गया। मुख्यमंत्री ने शहर भी घूम लिया, लेकिन घोषणाओं व विपक्षी आंदोलनकारियों को आश्वासन का पन्ना कोरा रहा। सियासत में तो अक्सर ऐसा ही होता है। श्रेय की ही तो लड़ाई है सारी। ऐसे में अंादोलनकारियों ने दिग्गज नेताओं की मौजूदगी में आंदोलन खत्म करने के साथ संघर्ष जारी रखने में ही खैर मानी। अचानक उपजे आंदोलन का पटाक्षेप भी उसी अंदाज में हो गया।
बहरहाल, समारोह और आदोंलन दोंनों ही शांतिपूर्वक हो गए, लेकिन दोनों की बातें याद आती रहेंगी और सालती भी रहेंगी। घोषणाओं की बातें करने वाले भी अपनी झेंप आंदोलन को कारण बता मिटा रहे हैं। कह रहे हैं आंदोलन नहीं होता तो कुछ मिल जाता। इधर भी तर्क है कि घोषणाएं हो जाती तो आंदोलनकारियों को श्रेय मिलने का डर था। इस तरह एक नई बहस, लेकिन निरर्थक सी बहस खड़ी हो गई। खैर, जितनी मुंह उतनी बात, लेकिन बीकानेर की तस्वीर कुछ तो सुधरी ही है। भले ही किसी बहाने से सुधरे, लेकिन इस पर संतोष तो नहीं किया जा सकता ना।

राजस्थान पत्रिका बीकानेर के 27 जनवरी 16 के अंक में प्रकाशित 

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