Wednesday, December 28, 2016

चिंता किसी को नहीं

 टिप्पणी 

विडम्बना देखिए, श्रीगंगानगर में स्थायी अतिक्रमण हटाने के लिए अपनाए जा रहे तरीकों पर विरोध होता है। शहर बंद कर प्रदर्शन किया जाता है। प्रशासन एवं सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी होती है। सत्ता पक्ष के साथ-साथ विपक्ष को भी यह कार्रवाई अखरती है। जनविरोधी लगती है। और तो और नगर परिषद में बात-बात पर बहस करने वाले पार्षद भी गाइड लाइन के मामले में एकजुट हो जाते हैं। सभी एक स्वर में कहते हैं, जहां-जहां अतिक्रमण हटाए गए हैं, वहां फुटपाथ बनना चाहिए। इसके लिए बाकायदा प्रस्ताव तक तैयार हो जाता है।
लेकिन अतिक्रमण हटाने को लेकर प्रतिक्रिया स्वरूप हुई उक्त तमाम तरह की गतिविधियां यहां पर आकर थम जाती है जबकि यह मामला भी अतिक्रमण से ही जुड़ा है। यह अस्थायी अतिक्रमण है। इसकी मार से भी समूचा शहर प्रभावित है। प्रदर्शन करने वाले, शहर बंद करवाने वाले, शासन-प्रशासन को कोसने वाले, गाइडलाइन के नाम पर एकजुटता दिखाने वाले यहां चुप हैं। शहर के प्रमुख मार्गों, बाजारों, पार्कों, बस स्टैंण्ड, शैक्षणिक संस्थानों व तमाम सरकारी कार्यालयों के आगे रोजाना अस्थायी अतिक्रमण पसर जाता है। यह अस्थायी अतिक्रमण होता है वाहनों को बीच रास्ते पर खड़ा करने से। इस वजह से कई जगह तो रास्ता तक अवरुद्ध हो जाता है। शहरवासी इस अस्थायी अतिक्रमण की मार से रोजाना दो चार होते हैं लेकिन इस समस्या का कभी ईमानदारी से समाधान नहीं खोजा गया। दिन प्रतिदिन शहर बढ़ रहा है। जनसंख्या बढ़ रही है। वाहनों की संख्या में भी जबरदस्त इजाफा हो रहा है। विशेषकर चौपहिया वाहनों की संख्या में अप्रत्याशित रूप से वृद्धि हुई है। ट्रेक्टर ट्रालियां, ऑटो रिक्शा भी बड़े बेतरतीब तरीके से खड़े होते हैं। कई जगह अघोषित स्टैंंड तक बन गए हैं। विशेषकर प्रमुख चौराहों पर तो हर तरफ स्टैण्ड ही स्टैण्ड है। सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई एक जानकारी में यह सामने भी आ चुका है कि शहर में पार्किंग के लिए कोई बड़ी जगह है ही नहीं। नगर परिषद के अनुसार शहर में पब्लिक पार्क के आसपास एरिया, पुराना राजकीय चिकित्सालय परिसर तथा चौधरी बल्लूराम गोदारा कॉलेज के उत्तरी दीवार के साथ-साथ रवीन्द्र पथ रोड ही पार्र्किंग स्थल हैं। अब गौर करने की बात यह है क्या यह तीनों स्थान पार्र्किंग के लिए मुफीद हैं?
खैर, शहर में पार्र्किंग को लेकर किसी तरह के नीति नियम नजर नहीं आते हैं। इस तरह के हालात में सबसे बड़ा सवाल तो यही उठता है कि आखिरकार इस समस्या का समाधान होगा कैसे और करेगा कौन ? लंबे समय से आंखों पर पट्टी बांधे बैठे जिम्मेदारों को इस दिशा में अब सोचना होगा अन्यथा फुटपाथ की कल्पना तो छोडि़ए पैदल चलने के लिए सड़क तक नहीं बचेगी। गाहे-बगाहे शहर हितैषी का दावा करने वाले तथा साम्प्रदायिक सद्भाव की सरिता बहाने वालों को भी कोई सकारात्मक पहल करने होगी अन्यथा वेद जोशी जैसे जागरूक लोगों के पास कारगर हथियार के रूप में न्यायालय का दरवाजा खटखटाना ही अंतिम विकल्प बचता है।


राजस्थान पत्रिका श्रीगंगानगर संस्करण के 27 सितम्बर 16 के अंक में प्रकाशित...

No comments:

Post a Comment