Wednesday, December 28, 2016

हां मंत्री जी, हम पिछड़े हैं...

पलटवार 
वाह मंत्री जी वाह। आपकी सोच को सलाम। आपकी समझ के तो कहने ही क्या। आपने पिछड़ेपन को पानी से जोड़ दिया और लगे हाथ अपने प्रदेश के साथ तुलना भी कर डाली। वैसे आपके प्रदेश के बारे में कहा जाता है कि यहां के लोग हाजिर जवाब एवं मुंहफट होते हैं। हम आपके पड़ोसी हैं तो कुछ संस्कार तो आने स्वाभाविक हैं। रोटी-बेटी का रिश्ता जो ठहरा। तभी तो आपके बयान का बदला अपनी बात से उतारने में गुरेज नहीं कर रहा हूं। आपके प्रदेश की प्रगति किस तरह की है यह किसी से छिपा नहीं है। फिलहाल वहां किस तरह के हालात हैं और वहां का युवा किधर जा रहा है कि कहने की जरूरत नहीं रह जाती है। आप भी भली भांति जानते हैं। बिना फौज में गए या नौकरी किए भी वहां पैसे की त्रिवेणी बह रही है, शायद इसलिए कि पानी की उपलब्धता के बाद वहां कि जमीन पैसा उगलने लगी। उसकी कीमत आसमान को छू गई और उसको बेच-बेच कर लोग मालामाल हो गए। इतने मालामाल कि ऐशोआराम के तमाम साधन तक जुटा लिए। और हां हम पिछड़े ही हैं तो फिर आपके प्रदेश के लोग इस पिछड़े इलाके में जमीनें क्यों खरीद रहे हैं। यहां तो कोई सुविधा ही नहीं है। पानी भी नहीं है। क्या करेंगे वो इस जमीन का। समृद्ध इलाके को छोड़कर डार्क जोन क्षेत्र में जमीन खरीदना भला कहां की समझदारी है। बताइए जरा। खैर, पानी ही पिछड़ेपन का कारण है तो उसके जिम्मेदार भी आप ही हो। आपसे तात्पर्य राजनीतिज्ञों से है। आप तो दल बदल कर गंगा नहाए हो गए लेकिन जिस दल से आपका लंबे समय से नाता रहा है, कमोबेश उसी दल का शेखावाटी में भी आजादी के बाद से लगातार दबदबा रहा है। क्यों नहीं दूर कर पाए आप यह पिछड़ापन? क्यों नहीं दे पाए आप पानी? हम आपके भरोसे बैठे रहते तो क्या भूखे नहीं मर जाते? पानी तक तो दे नहीं पाए आप लोग, अन्न का तो सवाल ही नहीं उठता। आखिर आपके भरोसे कब तक रहते। आप राजनीतिज्ञों ने तो हमारा भरोसा बार-बार तोड़ा है। आप भरोसा नहीं तोड़ते तो यहां के धन्ना सेठ पलायन नहीं करते। गनीमत देखिए उन्होंने शेखावाटी से बाहर जाकर खूब नाम कमाया लेकिन अपनी माटी को नहीं भूले। उनका अपनी जड़ों से जुड़ाव आज भी है। यह शेखावाटी के धन्ना सेठों की सोच का ही कमाल है कि आज शेखावाटी शिक्षा में सिरमौर बना हुआ है। वो पिछड़े होते तो क्या इतना लंबा सोचते। कतई नहीं। उन्होंने शिक्षा का उजियारा फैलाकर हमको जागरूक बनाया। शिक्षा की लौ प्रज्वलित करने के पीछे उनका किसी तरह का स्वार्थ भी नहीं था। केवल और केवल उनका पुरुषार्थ था और परोपकार की भावना थी। शेखावाटी आज एजुकेशन हब के रूप में तेजी से उभर रहा है, यह उनकी जागरुकता की ही देन है। 
मंत्री महोदय, आपने फरमाया कि ज्यादा फौजी पिछड़ेपन की निशानी हैं और रोजगार के लिए युवा फौज और पुलिस में जाते हैं। यह बड़ा ही हास्यास्पद बयान है। इसमें विरोधाभास भी है। रोजगार कौन नहीं चाहता। जीवन यापन के लिए श्रम जरूरी है और श्रम किसी भी क्षेत्र में भी किया जा सकता है। रही बात फौज में जाने की तो वहां कोई ऐरा गैरा नत्थू खैरा तो भर्ती होता नहीं है। कुछ मापदण्ड हैं और कड़ी प्रतिस्पर्धा भी। सेना में शेखावाटी के सैनिक ज्यादा हैं तो क्या किसी की मेहरबानी से हैं? किसी ने यह नौकरी उनको खैरात में दी है? क्या शेखावाटी के युवाओं को फौज में भर्ती में कोई छूट मिलती है? क्या यहां के युवाओं के लिए कोई अलग से कोटा या आरक्षण की व्यवस्था है? खैर जाने दो। आप इस दिशा में सोचते तो शायद ऐसा बयान ही नहीं देते हैं। शेखावाटी का जर्रा-जर्रा बलिदान की खुशबू से महकता है। गांव-गांव में लगी शहीदों की प्रतिमाएं देशप्रेम की कहानी कहती हैं। यहां देश व सेना के प्रति श्रद्धा है, सम्मान है। यहां का युवा जज्बाती है। उसमें जज्बा है, जुनून है, जोश है। उसमें योग्यता है। क्षमता है। सेना में जाना यहां शगल है। एक परम्परा है। निसंदेह आपके बयान से शेखावाटी के मान, सम्मान व स्वाभिमान को ठेस पहुंची है। यह सही है कि पढ़े लिखे आदमी के लिए रोजगार की कहीं कमी नहीं होती है। फिर क्यों वह सीमा पर गोली खाने जाएगा? केवल पिछड़ा है इसलिए? नहीं, कतई नहीं मंत्री जी। शेखावाटी तो वह इलाका है, जहां वतन की खातिर प्राणोत्सर्ग करने की परंपरा आजादी से पहले से चली आ रही है। उस वक्त तो यहां पर पानी की किल्लत नहीं थी। फिर क्यों जाते थे सेना में? और हां जब आपने हमको पिछड़ेपन की उपमा से नवाज ही दिया है तो बताइए कि हमसे भी ज्यादा पिछड़े इलाकों के लोग सेना में क्यों नहीं हैं? अच्छे पैकेज को ठुकरा कर शेखावाटी का युवा सेना में क्यों जाना चाहता है? इन सवालों के जवाब किसी के पास ही नहीं है। मंत्री जी, सेना में भर्ती होने के लिए फौलाद का जिगर चाहिए। हिम्मत चाहिए, हौसला चाहिए। सामने जब साक्षात मौत हो तब उसका मजबूती से डटकर मुकाबला करने का साहस चाहिए। प्रतिकूल परिस्थितियों में मोर्च पर पर मुस्तैद रहने का जुनून चाहिए। यह सब यहां के लोगों के खून में है। आपका बयान हमारे युवाओं का मनोबल तोडऩे वाला है, उनको हतोत्साहित करने वाला है। मंत्री जी, बातों से देश का भला नहीं होने वाला। और अगर फौज या पुलिस में जाना ही पिछड़ेपन की निशानी है तो फिर हमको पिछड़ा ही रहने दो। हम पिछड़े होकर भी आप जैसे राजनीतिज्ञों के तरह अपनी स्वार्थ के खातिर पार्टियां नहीं बदलते। हम वतन पर जान देने वाले लोग हैं। इसलिए आप जैसों से तो हम पिछड़े ही बेहतर हैं।

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