Wednesday, December 28, 2016

इस जीवन का यही है रंग रूप.......


कई बार चाह के भी हम कुछ नहीं बोल पाते तो कई बार मजबूरी में भी लब सीलने पड़ते हैं। कितने भी प्रयास कर लिए जाएं लेकिन अंदर ही अंदर काफी कुछ टूटता है। सालता है। टीस जगाता है और दर्द देता है। तालमेल व सामंजस्य रखने के कारण इस दर्द को अक्सर पीना भी पड़ता है। यह एक तरह का समझाौता ही तो है, बिलकुल अलिखित सा, लेकिन आंखें चुगलियां कर देती हैं। पोल खोल देती हैं। तभी तो बरबस बरस पड़ती हैं नादान। नासमझ हैं ना, शायद भावनाओं के आवेग में खुद को रोक नहीं पाती, बह जाती हैं। इसी कशमकश का नाम ही तो जिंदगी है। हालांकि रात और दिन की तरह जीवन में सुख-दुख, धूप-छांव और उतार-चढ़ाव का दौर चलता रहता है लेकिन बदलाव कष्टकारी होता है। भले ही कहा गया हो कि परिवर्तन प्रकृति का नियम है लेकिन यह बदलाव बड़ा चुभता है, खटकता है, अखरता है। फिर भी जीवन के रंग अनंत हैं अथाह हैं, असीमित हैं। न तो सभी के साथ सामंजस्य बैठ सकता है और बैठ भी जाए तो सभी संतुष्ट हों इसका कोई भरोसा नहीं हैं। होना, न होना भी तो आखिर जीवन का ही अंग हैं। खैर...........।

No comments:

Post a Comment