Wednesday, December 28, 2016

रेलवे की मेहरबानी-2


गृह जिले में गांव जाने वाले रास्ते पर बने अंडरब्रिज में पानी भरने का एक फोटो कल मैंने फेसबुक पर शेयर किया था और बताया भी था कि इस तरह के हालात बारिश के मौसम में कमोबेश हर अंडरब्रिज पर होते हैं। पोस्ट पर हर तरह के कमेंट आए। एक दो निराशावादियों ने तो यहां तक कह दिया है कि कुछ नहीं होने वाला। राजनीतिक दलों से जुड़े लोगों ने इस समस्या को उस चश्मे से देखा। बहुतों ने सुझाव भी दिए तो कई ऐसे भी थे, जिन्होंने गेंद मेरे ही पाले में डाल दी। एक दो साथियों ने तो इस समस्या को नजरअंदाज कर बारिश का लुत्फ उठाने की नसीहत तक दे डाली। खैर, मैंने कल इस तरह की आशंका जता भी दी थी कि समस्या के संबंध में सबके अपने-अपने तर्क हो सकते हैं। मेरा मानना है कि अगर कोई समस्या है तो उसका समाधान भी है। इसके लिए जरूरी है अपनी बात उचित मंच पर रखी जाए। करीब दो साल मैं छत्तीसगढ़ प्रदेश के भिलाई शहर में रहा। भिलाई के बीचोबीच कोलकाता-मुम्बई रेलमार्ग गुजरता है। इस रेल मार्ग के एक तरफ भिलाई स्टील प्लांट व उसमें कार्यरत कर्मचारियों-अधिकारियों के आवास हैं तो दूसरी तरफ भिलाई नगर निगम क्षेत्र है। रायपुर-नागपुर सड़क मार्ग भी इस रेल लाइन के साथ-साथ ही गुजरता है। इस मार्ग पर लगातार रेलें गुजरती हैं। सवारी भी और कोयले से लदी गाडिय़ां भी हैं। भिलाई में दो तीन जगह रेल फाटक भी हैं लेकिन लगातार रेले गुजरने से वहां फाटकों पर वाहनों की कतार लगी ही रहती है। लोगों का समय जाया न हो इस लिहाज से वहां ओवर ब्रिज व अंडरब्रिज भी बने हुए हैं। चूंकि छत्तीसगढ़ में लगातार चार माह तक बारिश होती है, ऐसे में अंडरब्रिजों में वहां भी पानी भरना स्वाभाविक है। लेकिन वहां पानी निकासी के लिए अंडरब्रिज के नीचे जगह छोड़कर ऊपर जाल लगा दिए गए हैं। वहीं बगल में मोटर व पम्प लगा रखे हैं। इससे पानी हाथोंहाथ खाली होता रहता है। राजस्थान जैसे सूखे प्रदेश में छत्तीसगढ़ जैसी बारिश नहीं होती है। लेकिन एहतियातन सुरक्षा के कदम तो उठाने ही चाहिए। हमारे यहां बने अंडरब्रिज में चूंकि नीचे जगह ही नहीं छोड़ी गई है, इसलिए अब जुगाड़ के रूप में मोटर-पम्प ही सबसे मुफीद विकल्प है। 
 भले ही रेलवे ने इस तरह के अंडरब्रिज बनाकर मानव रहित फाटकों से मुक्ति पा ली हो लेकिन ऐसा करने में आमजन की बजाय ज्यादा फायदा रेलवे को ही हुआ है। क्योंकि कुछ जगह जहां सुरक्षाकर्मी तैनात थे, वहां भी अंडरब्रिज बना दिए हैं तो वहां भी कर्मचारी की जरूरत नहीं होगी। सोचिए रेलवे ने इन अंडरब्रिज के बहाने कितने सुरक्षाकर्मी को खाली करवा लिया। कितना मानव श्रम बचा या बेरोजगार हुआ यह बहस का विषय हो सकता है। रेलवे तर्क दे सकता है कि मानव रहित फाटकों पर दुर्घटना की आशंका रहती है। ऐसा सोचना सही भी हो सकता है क्योंकि इतिहास गवाह है इस तरह के हादसे हो चुके हैं। लेकिन कल्पना कीजिए अंडरब्रिज में पानी भरा है और किसी को तत्काल चिकित्सा की जरूरत है तो वह क्या करेगा? जब किसी तरह का कोई रास्ता दिखाई नहीं देगा तो वह रेल पटरी के ऊपर से जाने की ही कोशिश करेगा। इस तरह की परिस्थितियों के लिए जिम्मेदार कौन? एक बड़ा सवाल यह भी है कि क्या इस तरह के अंडरब्रिज बनाने से पहले से संबंधित लोगों का फीडबैक लिया गया या नहीं? माना रेलवे यात्रियों को सुविधाओं देने तथा सफर को सुगम एवं सरल बनाने को तत्पर है लेकिन इसका यह मतलब तो नहीं है कि बाकी लोगोंं के लिए परेशानी खड़ी कर दे। जनहित को दरकिनार करना किसी भी सूरत में न्यायोचित नहीं हो सकता। आमजन को अगर सहुलियत देना ही मकसद है तो फिर अंडरब्रिज बनाने के तौर-तरीकों में बदलाव करने पर पुनर्विचार करना चाहिए ताकि और कहीं तो इस प्रकार के हालात न बने।

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