Wednesday, December 28, 2016

'मां ' 'बहन' तक आ पहुंची राजनीति


'अंधे की औलाद अंधी' महाभारत काल में द्रौपदी के द्वारा कहे गए यह शब्द इन दिनों फिर से प्रासंगिक हो चले हैं। आखिर यही तो वो शब्द थे जो दुर्योधन को चुभ गए थे । इन्हीं शब्दों की वजह से महाभारत के युद्ध की बुनियाद रखी गई थी। यहां तक कि द्रौपदी को भरी सभा में निर्वस्त्र करने का प्रयास भी इन्ही शब्दों के कारण ही किया गया था। खैर, बोल जितने ज्यादा चुटीले या कड़वे होते हैं उनकी प्रतिक्रिया भी उतनी ही गंभीर और व्यापक होती है। दरअसल, बोल का हम भारतीयों में बड़ा महत्व है। इतिहास गवाह रहा है। रत्नावली के शब्द तुलसीदास को इतने चुभे कि वो संत तुलसीदास बने। संत कबीर ने भी कहा है कि ' वाणी एक अमोल है, जो कोई बोले जानी। हिये तराजू तौल के तब मुख बाहर आनी।' एक अन्य दोहे में भी उन्होंने कहा है कि 'शब्द संभारै बोलिए, शब्द के हाथ न पांव, एक शब्द मरहम करै, एक शब्द करै घाव। ' कहा भी गया है कि वाणी में वह शक्ति होती है जो ताप, तीर व तलवार में भी नहीं होती है। तलवार का घाव भर जाता है लेकिन कड़वी बोली से बना घाव कभी नहीं भरता ताउम्र बना रहा है।
हालांकि राजनीति में कड़वे बोलों को अक्सर जुबान फिसलने की संज्ञा देकर दरकिनार करने की कोशिश की जाती रही है लेकिन इन बोलो के पीछे सियासी समीकरण जरूर छिपे होते हैं। अब देखिए ना, भाजपा के दयाशंकर सिंह के द्वारा बसपा सुप्रीमो के बारे में कहे बोलो पर बवाल मचा है। बोलों के घमासान की गंभीरता को देखिए कि अभी से यूपी चुनाव नतीजों पर हार-जीत के कयास लगाए जाने लगे हैं। भले की हार-जीत समय के गर्भ में हो लेकिन राजनीतिक पंडित तो भविष्यवाणियां तक करने लगे हैं। बोल से आहत भाजपा में भी दयाशंकरसिंह की पत्नी के पलटवार से जान जरूर आ गई। बयानों के इस शोर ने राजनीति में आई गिरावट को जगजाहिर कर दिया है। गिरावट भी इतनी कि 'मां ' 'बहन' तक आ चुकी है। सियासी दलों को भी अब 'मां ' 'बहन' के मसले में ही सियासी फायदे नजर आने लगे हैं। बैठे बिठाए चुनावी मुद्दा भी मिल गया है। अब इससे ज्यादा शर्मनाक दौर और क्या होगा। बयानों पर बाहें चढाएं नेताओं की समझ पर सच में बड़ी कोफ्त होती है।

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