Wednesday, December 28, 2016

पुत्र के नाम पिता का पत्र


भतीजे सिद्धार्थ ने हाल ही में बीटेक पूरा किया है और उसका हुंडई में चयन हो गया है। भतीजा इसका हकदार भी है, क्योंकि रात भर जाग-जाग कर उसने पढ़ाई की है। खैर, जून के आखिरी सप्ताह में वह चेन्नई में ज्वाइन करेगा। कल 26 मई को भतीजे का जन्मदिन था। इस उपलक्ष्य में भाईसाहब ने उसको प्यार एवं नसीहत भरा खत लिखा। भतीजे ने वह पत्र आज मेरे साथ साझा किया तो मैं अपनी भावनाओं पर काबू नहीं रख पाया और आंसू बहने लगे। भाईसाहब की लेखन में रुचि है और मेरे को पत्रकारिता में लाने का श्रेय भी उन्हीं को है। पुत्र के प्रति पिता की भावना को भाईसाहब ने शब्दों के माध्यम से समेटने का प्रयास किया है। पत्र में छिपी भावना ने मेरे को मजबूर किया कि मैं यह आप सब से साझा करूं...। कहते हैं न कि वक्त अपने आप को दोहराता है। मुझे याद है जब बड़े भाईसाहब व बीच वाले भाईसाहब नौकरी के लिए घर से निकले थे तो मां और पापा कितने गमगीन थे। उनके सामने तो किसी तरह खुद को रोके रखा लेकिन जैसे वे घर से निकले आंसुओं की धारा बहने लगी। मेरे साथ भी यही हुआ था। कितना रोये थे मां पापा मेरे को भोपाल के लिए रवाना करते समय। सच में माता- पिता एक वट वृक्ष की तरह होते हैं जो संतान के सामने अपने दुख-दर्द एवं भावनाओं को शायद ही प्रकट करते हैं। भाईसाहब ने हिम्मत कर अपनी भावनाओं को शब्द दिए तो मेरे को अतीत की स्मृति हो आई। आप भी देखें।
26 मई 2016
प्रिय सिद्धू,
जन्मदिन पर बहुत सारा प्यार और शुभकामनाएं। यह जन्मदिन तुम्हारे लिए बहुत सारी खुशियां लाया है, बीटेक पूरा होने का साल। सफलता के द्वार खुलने का साल। सपनों के सच होने का वर्ष। एक छात्र को जो चाहिए वह सब पाने का वक्त। मैं भी बहुत खुश हूं, आशंकित डरा किन्तु खुशी से लबरेज। डरा हुआ इसलिए कि अधिक खुशी भी भय पैदा करती है और खुश इसलिए कि संतान की सफलता से बड़ी खुशी मां बाप के लिए और क्या होगी। किन्तु मैं कभी इन्हे खुले में प्रकट नहीं करता।
ज्वाइनिंग का वक्त ज्यों-ज्यों नजदीक आ रहा है, मन बैठा सा जा रहा है। तुम्हारे नजदीक रहने से सब कुछ भरा-भरा लगता है। इतने वर्षों में कभी तुम्हे दूर देखा नहीं है। डांट-फटकार, प्यार, शिकायत, सलाह। दिन फुर्र से उड़ जाता है। कमरे का अस्त-व्यस्त जीवन तुम्हारे लिए जिंदगी का हिस्सा बन गया है तो मेरे लिए झुंझलाहट में प्यार भरी झिड़कियों का। सोच के डरता हूं इस रिक्तता को कैसे भर पाऊंगा? दायित्वों से बंधा तुम्हारी उपस्थिति से मन शांत व संतोष से भरा रहता है। कई दिन बीत गए दायित्वों के निर्वहन में। अब तो इनके बिना भी जीवन अधूरा लगता है। कैसे समझा पाऊंगा अपने आपको। यह प्यार ही तो है ना। तुम्हारी मम्मी तो बहुत सरल और भोली व प्यार से भरी है। स्वास्थ्य ने उसे और कमजोर बना दिया है। वह तो कुछ भी सहन करने में समर्थ नहीं। कैसे समझा पाऊंगा उसे। लगता है उम्र बढऩे से भावनाएं और कमजोर हो जाती हैं। खैर, वक्त आदमी को ताकत देता है। समय के साथ सभी तरह की घटनाओं का घटना स्वाभाविक है। तुम कर्म पथ पर आगे बढ़ रहे हो तो हौसला और हिम्मत देना भी हमारा दायित्व है। तुम्हारी सफलता की शुरुआत अच्छी है, किन्तु जीवन में और अच्छा करने का प्रयास हमेशा करते रहना। तुम्हारे पास वक्त है और काबिलियत भी। तुम्हारी स्मरण शक्ति अदभुत है। भाषा और विषय पर पकड़ भी है। निश्चय ही जीवन में तुम ऊंचा मुकाम हासिल करोगे, मुझे यकीन है। मां-बाप संतति की सफलता से कितने खुश होते हैं। यह बनकर ही जान पाओगे।
मुझे विश्वास नहीं था और आश्चर्य है कि तुमने अपनी बहुत सी आदतों में बदलाव किया है। अब तुम परिवार के ढंग ढर्रे में ढलने लगने हो, पर अब भी तुम्हें अपने आप में बहुत कुछ बदलना है। मसलन, स्वास्थ्य व खान पान से जुड़ी तुम्हारी आदतें मुझे विचलित करती हैं। इस मामले में जिद नहीं करनी चाहिए। समय रहते इन पर नियंत्रण बहुत जरूरी है। सेहत के बिना सभी सुख बेमानी है। आशा है तुम इस मामले में समय रहते गौर करोगे।
अपने परिवार के सभी सदस्य बहुत ईमानदार, निश्छल व प्रिय हैं। सभी तुम्हे प्यार करते हैं। जीवन में किसी भी ऊंचाई पर पहुंच कर अपने लोगों को हमेशा दिल में रखना। उनकी दुआओं की ताकत तुम्हे सफल व सरल इंसान बनाएगी।
मैं किसी विषय पर गलत रहा हूं तो माफ करना। गलतियां सभी से होती है। तुम स्वस्थ रहो, सुखी रहो, मुस्कुराते रहो। लम्बी व सफल जिन्दगी ईश्वर तुम्हे दे।
इन्हीं ढेर सारी शुभकामनाओं के साथ।
तुम्हारे मम्मी-पापा।

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