Wednesday, December 28, 2016

सुल्तान, 'रेवाड़ी' और मैं

बस यूं ही 

करीब तीन साल बाद आज सपरिवार सलमान की फिल्म सुल्तान देखने गया। फिल्म पड़ोसी प्रदेश हरियाणा और वहां की अखाड़ा संस्कृति को पृष्ठभूमि को ध्यान में रखकर बनाई गई है। वैसे फिल्म की शुरुआत में हरियाणा राज्य के रेवाड़ी जिले का नाम देखकर मैं चौंक गया। रेवाड़ी न जाने कितनी ही बार गया हंू। रेवाड़ी के साथ बचपन का एक वाकया जुडा है। इस वाकये का जिक्र मैं अपने ब्लॉग बातूनी (http://khabarnavish.blogspot.in/ )में आज से पांच साल पहले कर चुका हूं। इसलिए रेवाड़ी जेहन में ताउम्र जिंदा रहेगा। खैर, फिल्म खेल से जुड़ी है और इसी के साथ-साथ पति-पत्नी का अंर्तद्वंद्व भी चलता है। पति को विश्व चैम्पियन होने का गुरुर हो जाता है तो पत्नी को इस बात का मलाल है कि खेल में गुरुर कैसा। यह गुरुर ही दोनों के बीच दरार पैदा करता है लेकिन खेल दोनों को जोड़े भी रखता है। दोनों को अलग होने का दर्द है और इस दर्द को दोनों चुपचाप पीते हैं। फिल्म में जिद और जुनून का जबरदस्त संयोग है। कहा भी गया है कि जुनून अगर सकारात्मक दिशा में हो तो वह मुकाम तक पहुंचता ही है। इसी फलसफे के इर्द-गिर्द फिल्म का ताना-बुना गया है। सुल्तान यानी सलमान पर पहले अपने प्यार को पाने का जुनून है तो बाद में प्रसव के दौरान पुत्र की मौत के बाद उसकी याद में ब्लड बैंक बनाने का। इन दो जुनून के बीच ही चलती है फिल्म। फिल्म को मैंने बड़ी शिद्दत एवं तल्लीनता के साथ देखा। विषयवस्तु पसंद की हो तो फिर एेसा करना लाजिमी भी है। कुश्ती एवं दंगल के नजारे में हरियाणा के अलावा सीमावर्ती इलाकों में आज भी प्रासंगिक हैं। मैंने भी बचपन में कुश्ती एवं अखाड़े खूब देखे हैं। पड़ोसी गांव किशोरपुरा में तो बाकायदा हरियाणा एवं दिल्ली के अखाड़ों के पहलवान हर साल होने वाली प्रतियोगिता में शिरकत करने आते रहे हैं। आज भी आते हैं। 
चूंकि फिल्म हरियाणा पृष्ठभूमि से जुड़ी है, लिहाजा हास-परिहास तो होना ही है। हरियाण की नहरें, हरियाणा रोडवेज, वहां का ग्राम्य जीवन आदि को देखकर बचपन जवां हो उठा। ननिहाल की गलियों की तरह के ही रास्ते। मेरा ननिहाल भी हरियाणा में ही है। सचमुच फिल्म में विशुद्ध रूप से हरियाणवी लुक है। लेकिन सलमान एवं अनुष्का की हरियाणवी मिश्रित हिन्दी थोड़ी कम जमती है। इससे अच्छी हरियाणवी तो सलमान के दोस्त बने अमित साध व अनुष्का के पिता बने कुमुद मिश्रा ने बोली है। उनके संवाद ठेठ हरियाणवी लगते हैं। वैसे फिल्म का कथानक इस तरह गूंथा गया है कि यह बोर नहीं करता। सुल्तान इन दिनों आने वाली फिल्मों के मुकाबले बड़ी जरूर है पर यह महसूस नहीं होती है। सलमान की फिल्मों के गाने फिल्म प्रदर्शित होने से पहले ही जुबान पर चढ चुके होते हैं। सुल्तान फिल्म के गानों के साथ भी ऐसा ही है। फिल्म में सलमान के लटके झटके देखकर सिनेमा हाल में न केवल सिटियां बजती हैं बल्कि आजकल के हुटिंग के शगल हूऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊ.... का शोर भी कई बार गूंजता हैं। 
चूंकि मैं खुद संवेदनशील एवं भावुक हैं, इस कारण अक्सर खुद से नियंत्रण खो बैठता हूं। मैं तब यह भूल जाता हूं कि यह फिल्मी दुनिया का सीन है। सुल्तान में भी दो बार आंखें न केवल भीगीं बल्कि आंसू बह निकले। पहले उस वक्त जब सुल्तान विश्व विजेता का खिताब जीतकर लौटता है लेकिन जब पता चलता है कि उसका नवजात बच्चा ग्रुप का खून न मिलने से दम तोड़ चुका है। इस सीन में अनुष्का-सलमान के संवाद वाकई जीवंत लगते हैं। दूसरी बार आंसू तब आए जब सुल्तान हारते-हारते बाजी जीतने में सफल हो जाता है। तब उसकी मेहनत को जीत में तब्दील होने की खुशी के आंसू थे। वैसे यह फिल्म शनिवार को देखने का विचार था, लेकिन आनन-फानन में विचार बना तो फिर बारह से तीन वाला शो देख ही आए। वैसे तो सब की अलग-अगल रूचि होती है लेकिन मेरे को फिल्म पसंद आई। आप भी परिवार के साथ फिल्म देख सकते हैं।

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