Wednesday, December 28, 2016

कभी-कभी दिन ऐसा भी होता है....


____________________________
कई बार चुपचाप ही 
गुजर जाता है दिन।
ना उम्मीद ना खुशी
ना गम ना हंसी
बस बीत जाता
है दिन।
सूखा सा लूखा सा
खुरदरा रूखा सा
फट से निकल जाता
है दिन।
अनमना सा अटपटा सा
अजनबी लुटा पिटा सा
हो जाता
है दिन।
न सूझता है ना दिखता है
बस मायूस मन कूढता है
ऐसा क्यों हो जाता
है दिन।
फिर दबे पांव
दस्तक दे जाती
काली स्याह रात
देखो बिना
हलचल ही
गुजर जाता
है दिन

No comments:

Post a Comment