Wednesday, December 28, 2016

मनमर्जी का निर्माण

टिप्पणी

श्रीगंगानगर में इन दिनों एक सड़क का निर्माण कार्य चल रहा है। डामर को हटाकर उसकी जगह सीमेंट से यह सड़क बन रही है। लक्कड़ मंडी टी प्वाइंट से शिव चौक तक बन रही इस सड़क की दूरी बमुश्किल तीन किलोमीटर होगी। अगर दोनों तरफ की दूरी मिला दी जाए तो यह छह करीब किलोमीटर होगी। यह शहर की प्रमुख सड़क है और यातायात का दबाव इस पर सर्वाधिक रहता है। चौंकाने वाली बात यह है कि छह किलोमीटर का टुकड़ा बनते-बनते करीब चार माह हो चुके हैं लेकिन सड़क का काम अभी तक पूरा नहीं हुआ है। सोमवार को शिव चौक से सुखाडिय़ा सर्किल तक यातायात एक बार तो बंद ही कर दिया गया। एक तरफ तो सड़क बन रही है जबकि दूसरी साइड सड़क की खुदाई शुरू कर दी। इससे वाहन चालक गलियों में भटकते रहे।
खैर, सोमवार ही क्यों। बीते चार माह में क्या-क्या नहीं हुआ। कछुवा गति से हो रहे इस काम की हालात यह है कि इसने शहरवासियों को बस रुलाया ही नहीं बाकी कोई कसर नहीं छोड़ी। इस सड़क का निर्माण तो शुरू से ही चर्चाओं में रहा है। सड़क बनाने के तौर-तरीकों को देखा जाए तो जाहिर भी होता है कि इसका काम मनमर्जी एवं बिना कार्ययोजना के हो रहा है। जनता को परेशानी हो तो हो अपनी बला से। सड़क बनाने वाले उसी अंदाज में बना रहे हैं। निर्माण कार्य कभी कहीं से शुरू किया तो कभी कहीं से। बड़ी बात यह है कि संबंधित विभाग भी आंखें मूंदे चुपचाप यह सब देख रहा है। विभाग की यह चुप्पी शर्मनाक एवं संदिग्ध इसीलिए भी प्रतीत होती है, क्योंकि दो बार सड़क निर्माण सामग्री की गुणवत्ता को लेकर शिकायत तक हो चुकी है। ऐसा लगता है निर्माण एजेंसी को विभाग ने मनमर्जी से सड़क बनाने की खुली छूट दे रखी है। चार माह से लोग धूल फांक रहे हैं। शहर की अंदर की गलियों में धक्के खा रहे हैं। जाम में फंस रहे हैं, लेकिन सब के सब चुप। जन सरोकारों पर सबके मुंह पर ताला। अधिकारी एवं जनप्रतिनिधि कोई कुछ नहीं बोल रहा। जो पीडि़त व प्रभावित है वह भले ही संबंधित निर्माण एजेंसी के कारिंदों के यहां गिड़गिड़ाए। गुहार लगाए लेकिन सब नक्कारखाने में तूती की आवाज सुनता कौन है। वैसे तो सड़क निर्माण के लिए इस समय का चयन करना ही गलत था। बरसात के मौसम में सड़क के आसपास वाले दुकानदारों एवं लोगों ने कितनी पीड़ा भोगी है वो ही जानते हैं। त्योहारों व पर्व पर कितने ही दुकानदारों की ग्राहकी मारी गई उनसे बेहतर कौन जान सकता है। सड़क पर चलने वाला वाहन चालक या राहगीर ने कितनी धूल फांकी वो ही महसूस कर सकता है।
बहरहाल, जनता के लिए बनने वाले काम बिना वजह की देरी दर्द देने लगती है। जनहित से जुड़े कामों को प्राथमिकता से व तय सीमा समय से पूरा करने की कोशिश की जानी चाहिए। और हां विभाग द्वारा चुपी साधकर संबंधित एजेंसी की ढाल बनने या उसे अभयदान देने वाली बात जहां होती है वहां जनहित दरकिनार होता रहा है। संबंधित विभाग के लिए हमेशा जन हित सर्वोपरि होना चाहिए। विभाग को इस सड़क के काम से सबब लेना चाहिए ताकि भविष्य में इस तरह की हिमाकत कोई दूसरी एजेंसी तो नहीं करे।

राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में 15 नवम्बर 16 प्रकाशित...

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