Wednesday, December 28, 2016

सवाल

मेरी 18वीं कहानी

उसकी आंखों से टप टप आंसू गिर रहे थे। गला भर्राया हुआ था। गोद का बच्चा भी जोर-जोर से रो रहा था। उसकी अंगुली थामे वह पांच साल की मासूम बेटी जरूर खामोश थी लेकिन उसके चेहरे से बयां हो रहा था कि मां की हालात से वह भी दुखी है। किसी तरह से भावनाओं पर काबू रखते हुए उस महिला ने चुप्पी तोड़ी। मैं बहुत दुखी हूं। मेरा पति व ननदें तंग करती हैं। बात-बात पर घर से निकल जाने की धमकी देते हैं। खाने को राशन भी समय पर नहीं देते हैं। दरअसल, मेरे पति के पड़ोसी महिला से संबंध हैं। वो नौकरीपेशा है और विधवा है। मेरा पति मेरे सामने ही उसको गाड़ी में घूमाने ले जाता है। मैं मना करती हूं लेकिन मेरी बात का कोई असर नहीं है। पत्नी होने के नाते यह सब कैसे बर्दाश्त कर लूं। रोते हुए बच्चे को थपकी से शांत कराने का उपक्रम करते हुए वह लगातार कहे जा रही थी। आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। बीच-बीच में वह उनको पौंछती जा रही थी। अचानक चेहरे पर थोड़ी तल्खी लाते हुए वह फिर बोली, मैने पुलिस थाने में भी शिकायत की है और महिला थाने में भी लेकिन पति ने पैसे खिला दिए। मेरी कहीं सुनवाई नहीं हो रही है। वह फूट-फूटकर रोने लगी। मैं और बाकी साथी यह सब देखकर सन्न थे। खुद को संभालते हुए उसने हमारी तरफ मुखातिब होते हुए सवाल किया, पड़ोसन से पति के संबंध शादी से पहले के ही हैं तो उन्होंने फिर मेरे से शादी ही क्यों की? उस पड़ोसन से ही कर लेते, कम से कम मेरी जिंदगी तो नरक नहीं बनती। हम सब उसके सवाल पर स्तब्ध थे और एक दूसरे को मुंह ताक रहे थे।

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