Wednesday, December 28, 2016

मीडिया और मानसून राग


बस यूं ही

अपुन को आज तक यह मानसून राग समझ नहीं आया। पता नहीं यह मानसून कब आता है, कहां अटकता है। कब सक्रिय होता है और कब बरसता है। कहने तो हर साल मीडिया में मानसून सुर्खियां बनता है। बड़ी-बड़ी भविष्यवाणियां होती हैं, बाकायदा तिथि तक का एेलान कर दिया जाता है कि फलां तारीख को मानसून भारत में प्रवेश करेगा। इतना ही नहीं यह तक बता दिया जाता है कि भारत में कौनसी दिशा से आएगा। मसलन, बंगाल की खाड़ी से आएगा, अरब सागर से घुसेगा या हिन्द महासागर से इंट्री मारेगा। भविष्यवाणियों की फेहरिस्त पर यहीं विराम नहीं लगता। काटो तो खून वाले हालात तो तब बनते हैं जब बताई गई तिथि को एक बूंद तक नहीं गिरती। लेकिन यहां फिर यू टर्न लेते हुए बताया जाता है कि मानसून भटक गया है। मानसून अटक गया है। मानसून ने रास्ता बदल लिया है आदि-आदि। मजे की बात तो यह है कि इस तरह की भविष्यवाणियां हर साल होती हैं। यह कितनी सही होती हैं और कितनी गलत यह तो अलग बात है लेकिन भविष्यवाणी करने का दौर बदस्तूर जारी रहता है। मानसून की चर्चा होने पर बचपन का एक वाकया जो पिताजी अक्सर बताते रहते हैं बरबस ही याद आ जाता है। पिताजी उस वक्त अजमेर थे। एक बार अजमेर में काफी तेज बारिश हुई। बाढ़ जैसे हालात बन गए। लोग बहुत परेशान हो गए। उनमें इस बात का गुस्सा था कि मौसम विभाग ने भविष्यवाणी नहीं की। इसके बाद तो भविष्यवाणियां जारी की जाने लगी। भले ही किसी दिन बादल छाए रहने की भविष्यवाणी की गई लेकिन बादलों के दर्शन ही नहीं हुए। आसमान साफ रहने की संभावना जताई गई लेकिन बादल छा गए। मौसम साफ रहने के बारे में बताया गया लेकिन तेज हवा चली या आंधी आ गई।
वैसे राजस्थान में मानसून का इंतजार किसी मेहमान से कम नहीं होता है। एेसे में इस तरह की भविष्यवाणियां बारिश का इंतजार करने वालों के भरोसे की परीक्षा लेती हैं। हां यह बात जरूर है कि मीडिया में मानसून की भविष्यवाणियां पढ़-पढ़कर मीडिया से जुड़े लोगों को ही विशेषज्ञ जरूर समझ लिया जाता है। मेरे साथ भी कई बार एेसा हुआ है। गांव जाने पर वहां लोग पहला सवाल मौसम का ही करते हैं। सीजन अगर बारिश का हुआ तो पूछ ही बैठते हैं कि बरसात कब तक हो जाएगी। मैं सिवाय मंद-मंद मुस्कुराने के उनकी बातों का कोई जवाब नहीं दे पाता। वाकई यह मानसून राग अपने तो पल्ले नहीं पड़ता। खूब माथापच्ची कर ली। अटकने, भटकने व बरसने की एबीसीडी नहीं मालूम। वैसे भविष्यवाणी सच न होने के पीछे सबसे बड़ा कारण मौसम का बेईमान होना भी है। मौसम पल-पल बदलता है। तभी तो मौसम की तरह बदलने के गीत भी लिखे गए हैं। ऐसे में मैं दोष मौसम पंडितों को न देकर मौसम को ही देता हूं जो बार-बार बदल जाता है। इसलिए मानसून दगा दे जाए तो गलती भविष्यवाणी करने वालों की नहीं मौसम की है। इसलिए खुशी व गम को भूलकर गुनगुनाइए 'यह मौसम भी गया...। '

No comments:

Post a Comment