Wednesday, December 28, 2016

जबान संभाल के


बस यूं ही

मुझे कोई सोलह सितम्बर 16 की सबसे सर्चित खबर मतलब न्यूज ऑफ द डे पूछे तो मैं तत्काल दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की जुबान लंबी होने तथा उसकी सर्जरी करने संंबंधी समाचार को प्राथमिकता दूंगा। यकीनन आज इस खबर ने देश-विदेश में खासी धूूम मचाई है। विशेषकर सोशल मीडिया में तो इस खबर पर जोरदार चटखारे लिए जा रहे हैं। कहीं चुटकले गढ़े जा रहे हैं तो कहीं जुबान से बावस्ता नाना प्रकार के जुमले ईजाद हो गए हैं। जुबान पर गुदगुदाने तथा चुटीले अंदाज वाले कार्टून तक बन गए हैं। विशेषकर मोदी समर्थकों में यह खबर जबरदस्त तरीके से वायरल हुई है और शेयर की जा रही है। कुछ जुमलों की बानगी देखिए- 'उन डाक्टरों को नोबल पुरस्कार मिलना चाहिए, जिन्होंने पता लगाया कि केजरीवाल की जुबान लंबी है।' 'कहावतों में दम है, जुबान लंबी हो जाए तो खींचनी पड़ती है।' लंबी जुबान और लंबा धागा अक्सर उलझ जाते हैं।' 'रिकवरी में समय लगेगा क्योंकि शुगर पेशेंट तथा मोदी मोदी करने के कारण मोदी नाम याद आते ही जीभ तलवे पे चिपक जाती है।' ' दो औरतें एक साथ चुपचाप बैठ सकती हैं लेकिन सरजी का चुप रहना नामुमकिन है।' 'चिकित्सकों को भी जनता के माध्यम से ही पता चला है कि भारत की इस महान विभूति की जीभ लंबी है।' 'सर्व विदित तथ्य उजागर हुआ है।' 'किसी ने सच ही कहा है कि जिसकी शर्ट शरीर से लंबी हो, जीभ मुंह से बड़ी हो, बातें से काम से बड़ी हो, और सोच औकात से बड़ी हो उस आदमी की हर तरह की सर्जरी करना जरूरी हो जाता है। शुरुआत हो चुकी है।'
 यह तो हुई जुमलों की बात। वैसे भी देश में इन दिनों जुमलों की ही बहार है। कभी कभी तो लगता है यह देश व सरकार जुमलों के सहारे ही चल रहे हैं। खैर, बात जुबान या जबान की करें तो हिन्दी व्याकरण में इससे संबंधित मुहावरे एवं लोकोक्तियों की फेहरस्ति बेहद लंबी है। मसलन, जबान देना। जबान चलना। जबान चलाना। जबान खोलना। जबान से फिरना। जबान बदलना। जबानी जमाखर्च। जबानी याद। जबान का कच्चा। जबान का पक्का। जबान का धनी।जबान लड़ाना। जबान खींचना। जबान बंद रखना। जबान पर लगाम न होना। जबान तेज चलना। जबान तालु के चिपकना आदि आदि। जबान से जुडे यह तमाम शब्द, मुहावरे आज सुपरहिट हैं और प्रासंगिक भी। आज हर कोई जबान की अपने-अपने हिसाब से व्याख्या करने में जुटा है। जिस तरह का उत्साह व्याख्या करने वालों का है उससे लगता यह जोश कुछ दिन इसी तरह बदस्तूर चलने वाला है।
 बहरहाल, सियासत में जबान फिसलने के उदाहरण भी कई हैं। कई मौके आए हैं जब अच्छे अच्छों की जुबान फिसली है। यह जबान ही है जो रिश्ते तोड़ देती है, लड़ाइयां तक करवा देती हैं। इतिहास गवाह है इसलिए जबान को बस में रखना भी बेहद जरूरी है। इसलिए अपुन तो दायरे में रहते हुए और जुबान को संभालकर रखते हैं। बिलकुल देव नागरानी की गजल की इन चंद पंक्तियों की तरह-
फिर जबां खोलिए साहब, पहले लफ्जों को तोलिए साहब।
अब न ख्याबों में डोलिए साहब, जागिए, खूब सो लिए साहब।

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